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________________ २८८ : सिंह छटा ए संयम वरिया, सरस्वति मुख धरता, 'सम्यग्दर्शन' अमृत पाई, केई कुटुंब उद्धरता ॥५॥ • जिनशासननी रक्षा काजे, शेह शरम नहि धरता; उन्मार्गी - उन्मूलन काजे, विरता तन-मन धरता ||६|| • सारा विश्वे 'रामविजय' ए, नामे गुरुवर व्यात्त्या ; . भक्तजनोमा 'साहेबजी' ए, नामे अधिक दिवाज्या, ||७|| ० શ્રી જૈન શાસન (અઠવાડીક) • तुज विण आजे घोर अंधारु, काजल रात अमासी; तो पण तुज गुण स्मरणे अमने, शिवनी वाट उजासी ॥८॥ ० दुषमकाले भवअंटवीमां, सार्थवाह तुं होता; एकला - अटुला मुकी जाता, अंतर विह्वल थाता ||९|| ० भ्रम दतणीपेरे तुज पदपद्म, रहे सदा मुछ वासो; भवोभव गुरु हीज तुथाजो ए मुज अंतर बासो, ।।१०।। ● गुरुवर गुणली गातां, भव सागर तरी जाशु, ए गुरु आणा शिरपर लेतां, जन्म सफलता पाशु ।।११।। o वले नहि उपकार गुरुनो, अर्पु मुज जीवित जो; शीश नमावी एकज याचं, तुज गुण मुजने देजो, ।।१२।। : कलश : • अमे गाया गुरुगुण रंगे चंगे हर्ष तन-मन आदरी, आशिष मुक्तिचन्द्र - महोदय विजयजयकुंजरसूरी; गोकाकनगरे उत्सवे निश्रा विचक्षणसूरिश्वरु. 'सम्यग् नमं सूरिमुक्तिप्रभ श्रेयांसप्रभ ए गुरुवरु; पू. मुनिराज श्री सम्यग्दर्शनविजयजी 卐
SR No.537256
Book TitleJain Shasan 1993 1994 Book 06 Ank 01 to 48
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremchand Meghji Gudhka, Hemendrakumar Mansukhlal Shah, Sureshchandra Kirchand Sheth, Panachand Pada
PublisherMahavir Shasan Prkashan Mandir
Publication Year1993
Total Pages1038
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shasan, & India
File Size30 MB
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