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________________ ७६८: : श्री रे शासन (484133) द्रवीभूत नेत्र, वृद्ध किन्तु स्वस्थ शरीर, वह भावमुद्रा कुछ क्षणोके लिये मेरे आकर्षणका केन्द्र बन गई । हृदयमें छिपी हुई श्रद्धाका स्वप्न मूर्तिमान होकर आज साकार हो गया। मैंने ऐसा अनुभव किया। और मैं कुछ क्षणोंके लिये स्तब्ध सा हो गया। उनके प्रातः कालीन प्रवचनमें मुझे सम्मिलित होने का अवसर मिला। उनकी अमृतोपम सरल एवं निश्छल वाणीने जो भक्तिरसकी वर्षा की उनका वर्णन मैं लेखनी द्वारा नहीं कर सकता। . ___दर्शन ऐसे गहन, गंभीर विषय जिसमें बड़े बड़े विद्वानों और पंडितोकी प्रतिमा चक्कर खाने लगती है जटिल विषयोंको वे बड़ी सरलता से समझा देते हैं और श्रोताओंके हृदय पर उनके विचारोंका सीधा प्रभाव पड़ता है। वे. घन्टों बोलते रहे। कोई भी व्यक्ति उनके सत्संगसे उठना नहीं चाहेगा न सुनने से मन ऊबता है। ऐसे प्रसंगोके लिये कहा भी है 'गिरा अनयन नयन बिनवाणी।' __ साधू, संतो, व्याख्याता और उपदेशकोके वाग्जालमें मेरी निष्ठा. कभी नही रही। कारण उनकी कथनी और करनीमें बडा अन्तर रहता है। जब वे भाषण देते हैं तो मुझे रस लेनेकी अपेक्षा उनकी बुद्धि पर तरस आने लगता है । पत्रकार होने के कारण मेरी दृष्टि आलोचना प्रधान हो गई है किन्तु आचार्यश्रीके निकट जाने पर आलोचनाकी वह प्रवृत्ति कुंठित होकर निष्ठाके रूप में परिवर्तित हो गई। मेरा मन और बुद्धि दोंनोकी एक घन्टेके समयमें ही उनके सम्यक्दर्शन, सम्यक्ज्ञान और सम्यक्चारित्रके सम्मुख नत हो गये। ' मुझे उनकी कथनी और करनीमें समानताके दर्शन हुए। निश्चित ही देशको ऐसे ही साधुओंकी आवश्यकता है। ___ उनमें पाखंड और पांडित्यका बोझिल प्रदर्शन नहीं है। निश्छल आत्मासे निकलने वाली वाणी है जिसे सरलतासे साधारण से साधारण व्यक्ति हृदयंगम कर लेता है। __ बडे बडे विद्वानो एवं : साधुओं श्रीमन्तों एवं जन साधारण सभीने इनके उपदेशों, शिक्षाओंको ग्रहण किया । इन्हें व्याख्यान वाचस्पति, आचार्य विद्वतरत्न आदि उपाधियों से विभूषित किया गया। किन्तु उनकी प्रतिभासे सामने वे सब नगण्य हैं । उनकी साधना और तपस्या, चारित्र और संयम तथा मानवसमाजके लिये किये गये लोककल्याणकारी कार्योंको देखते हुए इनका मूल्य
SR No.537254
Book TitleJain Shasan 1991 1992 Book 04 Ank 01 to 48
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremchand Meghji Gudhka, Hemendrakumar Mansukhlal Shah, Sureshchandra Kirchand Sheth, Panachand Pada
PublisherMahavir Shasan Prkashan Mandir
Publication Year1991
Total Pages1022
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shasan, & India
File Size32 MB
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