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________________ श्री जैन श्वे है। डेरड. देवसेनसूरने काष्ठासंघकी उत्पत्ति विक्रममृत्युके ७५३ वर्ष बाद बतलाई है और इसे भी पाँच जैनाभासों में गिनाया है । उन्होंने इसके कुछ सिद्धान्त भी बतलाये हैं और कुमारसेनको मिथ्याती, उन्मार्गप्रवर्तक, रौद्र श्रमण संघवाद्य आदि अनेक उपाधियाँ दी हैं । પ कुमारसेनने ? स्त्रियोंको मुनिदीक्षा देनेका विधान किया, २ क्षुल्लकों को वीरचर्या (आतापनयोग आदि ) की आज्ञा दी, ३ मयूरपिच्छकी जगह मुनियों को गायकी पूंछकी पिच्छि रखनेका आदेश किया, ४ छट्टा गुणत्रत ( १ ) अर्थात् रात्रिभोजन त्याग नामक एक छट्टावत निरूपित किया और इसी तरह ५ आगम, शास्त्र, पुराण, प्रायश्चित्त आदि अन्यथारूप बनाकर मिथ्यात्वकी प्रवृत्ति की । काष्ठासंघ के श्रावकाचार यत्याचार देखनेसे इन बातोंका विशेष स्पष्टीकरण हो सकता है। इस संघ में नन्दितट, माथुर, बागड़, और लाडबागड़ ये चार भेद या गच्छ हैं । माथुरगच्छको कोई कोई इससे जुदा बतलाते हैं । काष्ठासंघको उत्पत्ति समयके सम्बन्धमें कुछ लोगों का यह ख्याल हो रहा है। कि वह वीरनिर्वाण संवत् ५६५ के लगभग लोहाचार्य के द्वारा स्थापित हुआ है । एक महात्माने इसकी पुष्टिके लिए एक कथा भी गढ़ ली है जो बहुतों के लिए वेद वाक्य बन गई है। बड़े आश्चर्य की बात तो यह है कि उसे अपनेको इतिहासज्ञ माननेवाले भी कुछ सज्जन सच समझते हैं, परन्तु वास्तव में वह कपोलकल्पना के सिवाय और कुछ नहीं है । लोहाचार्य के समय काष्ठासंघका होना सर्वथा असंभव है - वह आठवीं शताब्दिके पहलेका किसी तरह नहीं हो सकता । 1 इस समय काष्ठासंघके एक दो भट्टारक सुने जाते हैं, परन्तु सम्प्रदायके लिहाज़ से इसका मूलसंघ से अब कोई पृथक् अस्तित्व नहीं है । अग्रवाल, नृसिंहपुरा, मेवाड़ा आदि दो तीन जातियाँ इस संघकी अनुयायिनी समझी जाती हैं; परन्तु अब वे अविभक्त दिगम्बर सम्प्रदाय में हो लीन हो गई हैं। बड़ी प्रसन्नता की बात है कि लोग काष्ठासंघ और मूलसंघ के मतभेदको सर्वथा भूल गये हैं और आपस में हिलमिलकर धर्मका पालन करते हैं । माथुरसंघ | इसका दूसरा नाम निःपिच्छिक भी है, क्योंकि इस संघके मुनि पिच्छि नहीं रखते । कोई कोई इसे काष्ठासंघका ही एक भेद बतलाते है; परन्तु पिच्छि न रख
SR No.536627
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1915 07 08 09 Pustak 11 Ank 07 08 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Dalichand Desai
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1915
Total Pages394
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size11 MB
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