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________________ ૪૯૨ श्री न . 1. ३३८६. दूसरा पक्ष कुछ ठीक है, 'हरिभद्र जिनभट के शिष्य थे, यह प्रायः सभी को मान्य ही होगा, क्यों कि “कृतिः सिताम्बराचार्यजिनभट्ट (ट)पाद सेवकस्याचार्य हरिभद्रस्य " इत्यादि हरिभद्री ग्रन्थों के प्रान्तलेख तथा “जिनभटसूरिमुनीश्वरं ददर्श” इत्यादि चरितग्रन्थों के उल्लेख देखने से निश्चित होता है कि आचार्य हरिभद्रजी के गुरु जिनभटसूरि थे। मेरा भी पहले इसी पक्ष पर दृढ विश्वास था, परंतु जब से इन प्रमाणों से भी अधिक बलवान् तीसरे पक्ष को सिद्ध करनेवाला प्रमाण दृष्टिगत हुआ तो पूर्वोक्त द्वितीय पक्ष की मान्यता मुझे शिथिल करनी पड़ी। वह प्रमाण यह है- “समाप्ता चेयं शिष्यहिता नामावश्यकटीका....कुतिः.... सिताम्बराचार्यजिनभटनिगदानु___ अत एव आपने जगह जगट जिनभटसूरि के साथ 'शिष्य' शब्द का प्रयोग नहीं करके 'सेवक' शब्द का व्यवहार किया है। यद्यपि प्रभावकचरित में स्पष्टतया आपको जिनभट का शिष्य लिखा है पर उसका रहस्य ओर है "जिनभटनिगदानुसारिणः” इस विशषण से ऐसा अनुमान होता है-शायद जिनभटसूरि आप के विद्यागुरु होंगे या आप के गुरु के गुरु या गुरुम्राता होंगे, इसी लिये “ जिनभटपादसेवकस्य" इत्यादि विशेषणों के द्वारा आपने उन के साथ गुरुबुद्धि से वर्ताव किया है। संभव है इन्ही विशेषणों से प्रभाचन्द्रसूरिजीने आप को जिनभटमूरि के दीक्षित मान अपने ग्रन्थ में तदनुसार लिख दिया है। भटमूरि आप के विद्यागुरु होंगे या आप के गुरु के गुरु या गुरुम्राता होंगे, इसी लिये " जिनभटपादसेवकस्य" इत्यादि विशेषणों के द्वारा आपने उन के साथ गुरुबुद्धि से वर्ताव किया है। संभव है इन्ही विशेषणों से प्रभाचन्द्रसूरिहरिभद्रसूरिजा क खुद कोबना कसा क मुहस नकेलना असमीवत है, इस बात को पाठक महाशय बखूबी समझ सकते हैं। - दूसरी संदिग्ध बात आप के ग्रन्थों की संख्या के विषय में है-"१४४४ बात को पाठक महाशय बखूबी समझ सकते हैं। दूसरी संदिग्ध बात आप के ग्रन्थों की संख्या के विषय में है-"१४४४
SR No.536627
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1915 07 08 09 Pustak 11 Ank 07 08 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Dalichand Desai
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1915
Total Pages394
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size11 MB
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