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श्री जैन श्वे. 1. ९२८६. श्रीहरिभद्रसूरिके जीवन-इतिहासकी
संदिग्ध बातें।
लेखक-मुनिकल्याणविजय। पूर्व कालमें हिंदुस्थानमें-विशेषतः जैनसमाजमें ऐतिहासिक चरित लिखने का रिवाज बहुत कम था, अगर किसी महापुरुष का चरित कोई लिखता भी तो खास मुद्देकी बातें लेकर अन्य छोड देता। सोमप्रभाचार्य के समय ( १२४१ ) तक इस अयोग्य रूढिका प्रायः भंग नहीं हुआ। जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण-देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण-कोट्याचार्य-मलयागिरि सूरि वगैरह अनेक महोपकारी.धुरंधर जैनाचार्यों के जीवन-इतिहासों से जो जैनप्रजा अज्ञ है इस का भी हेतु वह रूढि ही है ।
आचार्य-हरिभद्र के जीवनचरित की भी छिन्न-भिन्न दशा इसी कुरूढि का फल है । खैर।
जो भावि था हो गया, अब इस भूतकालकी बात का शोक करना वृथा है, अब तो वर्तमान पर ही दृष्टि दो, अपना जो प्रथम कर्तव्य है उसे हाथमें लेलो।
सज्जन जैनो ! आलस्य दूर करो ऐश आराम करना आपका प्रथम कर्तव्य नहीं है, नामवरी के लिये हजारों रुपयों का धुआँ उड़ा देना आपका प्रथम कर्तव्य नहीं है, और प्रमाद निद्रामें पड़े रहना भी आपका प्रथम कर्तव्य नहीं है। ऐश आराम का नाम तक भूल जाओ ! नामवरीकी लालसा को सौ कोश तक दूर फेंक दो! और साहित्योद्धार व इतिहास खोज के लिये कटिवद्ध हो जाओ ? बस यही आपका प्रथम कर्तव्य है, इसीसे आपका जो साध्य बिन्दु है सिद्ध होगा, और जिन ऐतिहासिक बातों के बारे में आप निराश हो बैठे हैं उनका भी पता इसीसे लगेगा।
पाठकगण ! शोध खोज के अभाव से ऐतिहासिक बातों में कैसी गड़बड़ी हो जाती है इस बातका आपको अनुभव कराने के लिये श्रीहरिभद्रसूरिके जीवन इतिहास में से सिर्फ दो-चार संदिग्ध बातें और उनका निर्णय आ. पको समर्पित करता हूं।