________________
જૈન શ્વેતાંબર કોન્ફરન્સ હેરંs. हास का उत्तर दायित्व आप पूज्यों के सिर ही रहेगा. कारण आप धर्मनेता हैं धर्मरक्षक हैं, धर्मगुरु है, संघ के लिये गोपाल हैं. और ऐसी दशा में उत्तर दायित्व सिवाय मुनिगण के किसपर हो सक्ता है. - पूज्यवर्य ! यह निसंदेह कहा जा सकता है कि इस क्षेत्र में परिसह बहुत है । क्षेत्रमें गर्मी बहुत पडती है, वालू रेत में पैर नलते हैं, कई गांवों में समय पर आहार तो दूर रहा पानी तककी जोगवाई नहीं मिलती, श्रावकों में आदर भक्ति नहींइत्यादि अनेक बातें इस प्रांत के विषय में कही जा सक्ती हैं. पर पूज्यवर्य ! क्या यह परिसह कानों में कीले ठोके जाने से, अथवा बियावान जमल में शीत उष्ण में ध्यानावस्था में खडे रहने से अथवा सर्पसे डसे जाने से अथवा कपाल पर अग्नी जलाइ जाने से भी अधिक कठिन है ? परमात्मा महावीर आदर्श हैं, मोक्ष उद्देश है, संसारिक दुख सामने हैं तो क्या उन मुनिवरों को कि जो कञ्चन कामनी तथा अन्य सांसारी सुखों को त्याग करके चारित्र अंगीकार किया है ? उन्हें स्वयं मोक्ष जाने से तथा श्रीसंघ के कल्याण के लिये प्रयास करने से कोई परिसह रोक सकता है ? कदापि नहीं. पूज्यवर्य यदि मुनिगण थोडी सी देर के लिये अपने उद्देश तथा प्रभूके वचनों और संघ के कल्याण की और ध्यान दे तो हमें विश्वास है कि वे इस प्रान्त से एसे उदासीन रह ही नहीं सक्ते जैसे वे इस समय हैं ! . पूज्यवर्य केवल संतान के सांसारी सुख के लिये युद्ध में लाखों पुरुष अपने माण त्याग कर रहे हैं तो क्या सारी जाति को मोक्षमार्ग पर लेजाने को हमारे त्यागी मुनिवर सामान्य परिसहों से भयभीत होकर इस प्रान्त में आने तथा विचरने से हिच किचावेंगे ऐसी हमें कदापि आशा नहीं है. पूर्वकाल में मुनिगण विचरते थे
और अब भी स्थानकवासी साधू विचरते है तो क्या आप लोगों के लिये विच. रना इस प्रान्त में अधिक दुष्कर है।
पूज्यवर्य शासनोन्नति के लिये, धमकी रक्षा के लिये जैन जाति को वास्तविक जैन जाति फिरसे बनाने के लिये मुनिवरों के कठिन परिश्रम की आवश्यक्ता है इसलिये राजपूताने के श्रीसंघ की इस कान्फरेन्स के द्वारा आप से सविनय प्रा