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________________ ૫૦૨ श्री जैन श्वे. 1. 3२८३, खूब! यह भी कुछ युक्ति है ? जैनागम, वेद, वेदान्त, पुराणादि सैकड़ों ग्रन्थों में साल ( रचना काल ) नही पाई जाती इससे क्या डा. साहब उन सब ग्रन्थों को अर्वाचीन मानेंगे ? नहीं नहीं ऐसा कभी नही हो सकता । इससे तो यह सिद्ध होता है कि जेकोबी साहब का यह लिखना विना शोध का और उतावल का है। उक्त प्रस्तावना में और भी अनेक अशुद्धियां है पर उनका उलेख यहां पर अप्रासंगिक होने से नहीं किया जाता। मुझे आशा है इन साधक बाधक प्रमाणों से आप को मानना उचित होगा कि हरिभद्रसूरि का स्वर्गवास ठीक ५८५ में ही हुआ है, तथापि यदि किसी भी महाशय के पास इस विषय के साधक बाधक और भी प्रमाण होवें और अगर वे प्रकाशित करें तो जरूर ही इस गूढ विषय में भी अच्छा प्रकाश पड़ेगा। प्रियपाठकछंद ! इस विषय में मुझे जो कुछ मालूम था उस का सार आपको अर्पण कर चुका हूं । मैं जानता हूं कि इस जटिल विषय में जरूर ही मै स्खलित हुआ होऊंगा इस लिये आप को लाजिम है कि अगर इस लेख में किसी जगह स्खलना मालूम हो तो मुझको सूचना देने की तकलीफ उढावे, मैं उपकार के साथ उसका स्वीकार करूंगा। गुरुवार ता. ५-८-१९१५ जालोर ( मारवाड़) प्रार्थी कल्याणविजय.
SR No.536511
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1915 Book 11 Jain Itihas Sahitya Ank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Dalichand Desai
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1915
Total Pages376
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size10 MB
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