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________________ શ્રી હરિભદ્રસૂરિકે જીવન-ઇતિહાસકી સ ંદિગ્ધ ખાતે ૪૯૧ यद्यापि हरिभद्र नामके आचार्य करीब ७ सात के हुए हैं, तथापि मैं जो इतिहास लिख रहा हूँ सबसे पुराने ललितविस्तरादि प्रकरणकर्ता याकिनी साध्वी के धर्मपुत्र हरिभद्रसूरि का है । प्रभावकचरित, चतुर्विंशति प्रबन्ध वगैरह ऐतिहासिक चरितग्रन्थों में आप के जीवनचरित का सविस्तर उल्लेख है परंतु उनमें भी ऐतिहासिक बातें सिर्फ निम्न लिखित ही पाई जाती हैं:- “गांव और आपका नाम, प्रतिज्ञानिर्वाहार्थ जिनमसूरिके पास दीक्षा लेना, आचार्यपद, हंस और परमहंस का बौद्ध विहार में गुप्त वेश से पढ़ने के लिये जाना, बौद्धों को उनके जैनत्वकी खबर, दोनोंका बौद्धकृत उपद्रव से मरण, आचार्यका बौद्धों के ऊपर कोप, गुरुद्वारा उसकी उपशांति, शास्त्र रचने के वास्ते शासन देवी की प्रार्थना, शास्त्ररचना और उसके विस्तार के लिये एक वणिक् को प्रतिबोध। ” इसके अतिरिक्त संपूर्ण बाल्यावस्था का जीवन, दीक्षा लेनेके बाद किये हुए शासनहित के कार्य, शिष्यसंतति तथा स्वर्गवास का स्थान वगैरह सेंकड़ों आवश्यकीय बातों का पता सर्वधा दुर्लभ हो गया हैं । खैर । इन बातों पर जितना पर्यालोचन करें उतना ही कम है; पर यह प्रसंग सिर्फ दो चार संदिग्ध बातोंके विवरणका है इस लिये उन्ही का विशेष बयान करूंगा । इस पहिली संदिग्ध बात यह है कि हरिभद्रसूरि किस के शिष्य थे ? के उत्तर में कई लोगों का कहना है कि याकिनी महत्तरा के धर्मपुत्र हरिभद्रसूरि आचार्य श्रीजिनभद्रसूरि के शिष्य थे ऐसा पट्टावल्यादि में देखा जाता है। दूसरों का कथन यह है आचार्यहरिभद्र जिनमसूरि के शिष्य थे । प्रभावकचरित में भी हरिभद्रसूरि आचार्यजिनभ के शिष्य लिखे हैं । अब इन दोनों पक्षों में से किस को प्रमाण करना ऐसा निर्णय करना यद्यपि कठिन कार्य है तथापि यथामति उद्योग करना पुरुष का कर्तव्य है । इतिहास पढ़ने से मालूम होता है कि प्रथम पक्ष सर्वथा अनुपपन्न है । जिनभद्रसूरि के शिष्य हरिभद्र ललितविस्तरादिग्रन्थ कर्तृ हरिभद्र से जुदे हैं, इनका सत्तासमय विक्रमकी दशवीं सदी का पूवार्ध है, परभु ललित विस्तारादि कर्ता इन से बहुत पुराने हैं ऐसा आगे निर्णीत होगा.
SR No.536511
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1915 Book 11 Jain Itihas Sahitya Ank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Dalichand Desai
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1915
Total Pages376
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size10 MB
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