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________________ શ્રી જૈન કૅન્ફરન્સ હેર૭. भी अपना धर्म समझना चाहिये कि अपने मित्र वर्गों को ताश, चौसर, शतरञ्ज खेलने और निर्मूल गप्पों में काल व्यतीत करनेसे रोकें और उनको इस बात की प्रेरणा दिलावें कि वे लोग अपना समय सम्बाद-पत्र और पुस्तक पढ़ने में बितावें, हमारे देशभाइयोंका कितना अमूल्य समय केवल गप्पबाजियों में ही बीतता है यदि वे अपने इस अवसरको समाचारपत्रोंके पढ़नेमें व्यतीत करें तो उनकी अवस्था इतनी शोचनीय न हो । देखिये जापानी और इङ्गलिस्तानवासी बच्चेसे लगा कर बूढ़े तक सम्बादपत्रोंका नित्य पढ़ना केवल अपना एक नित्यकर्म ही नहीं समझते बल्कि धर्मके समान मानते हैं । उनके जाति और देश की गौरवता सम्बाद-पत्र ही हैं । इसमें सन्देह नहीं कि भारतवर्ष में निर्धनताके कारण सभी लोग पत्र नहीं खरीद सकते हैं, इस लिये मैं भारतवर्ष के समस्त देशहितैषियोंसे सविनय प्रार्थना करता हूं कि वे लोग जिले २ में और तहसील २ में पुस्तकालय स्थापित करें और करावें जिसमें उत्तम २ ग्रन्थ और पत्र मँगाये जावें और सर्व साधारणको शौक दिला कि अपने फुरसतका समय पढ़ने में व्यतीत करें ॥ ____ यूरुप और अमेरिका देशोंक लोग अपने नित्यके कामकाज से छुट्टी पाकर अपने फुरसतका समय पत्रोंके पढ़ने में बिताते हैं इसी लिये वहांके लोग आधिक विद्वान् और, देशहितैषी और गुणवान् है । भारत वर्षमें यह कामे बड़ी सरलता से हो सकता है, क्योंकि यहां गांव २ जिले २ में मन्दिर और धर्मशालायें मौजुद हैं जहां उत्तम २ सम्बाद-पत्र रक्खे रहा करें । और लोग जाकर मुफ्तमें पढा करे । इससे कई लाभ तो प्रत्यक्ष ही है. ( १) बिना अधिक खर्च किये ही उत्तम स्थान पढनेके लिये मिल सकते हैं, (२) मन्दिरों का सुधार भी इससे बहुत कुछ हो सकता है, (३) सर्व साधारण अपना काल पढ़ने में व्यतीत कर सकेंगे और देशकी अवस्था जान जायँगे तो बहुत कुछ देशको लाभ - पहुँचा सकेंगे, (४) उनका समय भी व्यर्थ न जायगा, (५) जब लोगोको मुफ्त समाचारपत्र पढ़ने को मिलेंगे तो वे भी अवश्य ही अपने देशकी बुरी अवस्थाको जान कर उसके सुधारके उपायमें तत्पर होंगे । अतएव अपने देशहितैषी भाइयोंसे प्रार्थना करता हूं कि यदि व समझते हैं कि देशकी अवस्था बहुत ही खराब और हमारी अधोगति है, तो वे लोग अपने दयापात्र देश-भाइयों के हितार्थ प्रत्येक देवमन्दिरो, धर्मशालाओ ऐसे स्थानो में धर्मार्थ पुस्तकालय स्था.
SR No.536509
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1913 Book 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Dalichand Desai
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1913
Total Pages420
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size12 MB
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