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जैनसम्प्रदायशिक्षा। श्वेताम्बर धर्मोपदेष्टा यति श्रीश्रीपालचन्दरचित.
__ इस महत्वके ग्रन्थमें स्त्रीपुरुषोंका धर्म, पतिपत्नीसम्बंध, पाणिग्रहण, रजोदर्शन, गर्भाधान, गर्भावस्थासे लेकर जन्म, कुमार, युवा और वृद्धावस्थातककी कर्तव्य शिक्षाये, आरोग्यरक्षा, ऋतुचर्या, रोगनिदान, पूर्वरूप, उपशम; डाक्टरी और देशी रीतिसें रोगोंकी परीक्षा, चिकित्सा, पथ्यापथ्य, दुग्ध, घृत, तैल, दधि, तक्र, फल, तरकारी, कन्द' मूल. क्षार, नमक, शक्कर, गुड आदि सैकडों पदार्थोके गुणदोष, व्यायाम, वायुसेवन, आदि वैद्यकसम्बन्धी सम्पूर्ण बातोंका वर्णन बडे विस्तारके साथ सरल भाषामें कोई पांचसौ पृष्ठोंमें लिखा है. इसके सिवाय, व्याकरण, सामान्यनीति, राजनीति, सुभाषिता
ओसवाल पोरवाल महेसुरी, जातियोंकी उत्पत्ति, बाहर वा चौरासी जातियोका वर्णन, ज्योतिष, स्वरोदय, शकुनविद्या, स्वप्नविचार आदि अनेकानेक विषयोंकाभी इसमें संग्रह ह। एक बडेही अनुभवी विद्वानने अपने जीवनभरके अनुभवोको इसमें संग्रह करके सर्व साधारणके उपकारके लिये प्रकाशित किया है। यद्यपि इसका नाम जैनसम्प्रदायसे सम्बंध रखता है, परन्तु यथार्थ तौ इसमें जिन विषयोका वर्णन किया गया है, वे सबहीके लिये उपयोगी हैं। वैद्यक विषयकातो इसको एक अपूर्वही पुस्तक समझना चाहिये। हम प्रत्येक गृहस्थसे आग्रह करते हैं कि, वह इस नन्थकी एक एक प्रति मंगाकर अपने यहां अवश्य ही रक्खें और गृहस्थाश्रमकी शोभाको बढावें। क्योकि इसका “गृहस्थाश्रमशीलसौभाग्यभूषणमाला" जो दूसरा नाम है, वह बिलकुल ठीक है। सब लोकोंके सुभीतेके लिये रायल आठपेजी साइजके ८०० पृष्ठके इस बडेभारी' कपडेकी जिल्द बंधे हुए ग्रन्थकी कीमत केवल ३॥) रुपये रखी है। डाकमहसूल ॥) आना
पुस्तक मिलनेका पता:-तुकाराम जावजी,
निर्णयसागर प्रेसके मालिक-बम्बई.