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________________ १९११] एक आश्चर्यजनक स्वप्न, उपसहार. - प्रिय पाठक गणो, अब मै यह बात आपहीके बिचारपर छोडता हुं कि जो कुछ मैने (Nove1) नाव्हलकी तौर पर बनाकर आपके सामने प्रविष्ट किया वह वाकमे सच है या नहीं ? मेरे सजन भ्राताओ, कहिये तो जो पुत्र अपने माताओको दुःखी देखकरभी उनकी रक्षा न करें वे दुर्गतिके अधिकारे होगे या नहीं ? अवश्य होगेही. बस तो निश्चय हुवा कि उपरोक्त बातोकी उपेक्षा करेगा वह अवश्य नुकसान उठावेगा. हे वीर पुत्रों, सुपुत्र वही है जो अपने माताओके दुःखको दूर करें.. ____ अब आपको इस कल्पित कथासे पूर्ण तौर पर मआलुम हो गया होगा कि निःसंदेह आजकल जैनी लोग गिरती दशामे हैं. हे मैरै भ्राताओ ! जगो २ अब सो रहनेका वख्त नहीं है क्यो प्रमाद वश हुवे २ अपना पक्षपात तानकर दुर्गतिके अधिकारी होते हो. प्रिय कीर पुत्रो, जादे क्या कहूं जो आप सच्चे जैन होनेका दावा रखते हों तो फोरन जइन माताओके दुःखको दूर करो ऐसी एक सजनके मित्र और दुर्जनके दासकी अर्ज है. . सपूर्ण. सुत मा२३९. સંવત ૧૯૬૯ ના કારતક વદી ૭૦ થી માગશર વદી ૩૦ એટલે તા. ૧-૧ર-૧૦ થી તા૩૧-૧૨-૧૦ સુધીમાં આવેલા નાણાંની ગામવાર રકમ. ૨૫૦-૧૦૦ ગયા માસના પૃષ્ટ ૩૩૪ માં જણાવ્યા મુજ મ. १५- 0-0 नुन्नर - २-० भयर 0-१२-० या४॥ ८-१२-0 तगाम ७-४-0 गांव १- 0-0 गा 1- 0-0 भस। 1- 0-0 पुना १-०-० सीमा ०- ४-० सुनाए 0- १-0 सनगाव 0- ४-० अलेराव १-0-0 लुनाबसे 0- ८-0 पापा १- ४-० अगा १- 1-0 Yसगांव 0-४-0 भ२३॥ १- 0-0 सुशी 0-1- 0मा १- 0-0 घामरी २- ०-० ट।
SR No.536507
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1911 Book 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Dalichand Desai
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1911
Total Pages412
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size9 MB
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