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સચ્ચા સે મેરા,
जैन विधिसे भी विव ह न किया जाता, विचारिये, जब की अपने शास्त्रोमें संस्कार विधि होते हुवे अन्य विधि । विवाह आदि कराना कहां तक मांगलिक के लिए हो सकता है. सच्ची श्रध्धार्ह सम्यक्त्वका काण है. फाल्गुन मसमें अथश विवाहसमयपर अच्छे २ कुलवान स्त्रीपुरू निःशंक होकर विवेक रहित निर्लज़ताके गीत गाते हैं और अपने शीलमें लाञ्छन लगाते है क्या यह उच्च जातिके लिए लजाकी बात नहिं है. विवाहके समय दारूदखाना छेड क अपने पैसो पर आग लगाना और बेचारे जानवरों को त्रास पहुँचाना क्या दयाधमय के लिए अनुचित नहिं र? तेसे ही वैश्याके नृत्यमें बहोत रूपे शोखके छिये खर्च कर देते है वैश्या उन रूपियें में से कुरबानी के लिए हिस्सा निकालती है, उसमें भी अपन भागी होते हैं फिर पञ्जरापोठ बनाकर पशुओंकी रक्षा करनेका क्या मतलब है? शोचिये तो सही !
श्लोक २३ . यस्यास्ति वित्तं स नरः कुलीनः स पंडितः स श्रुतिमान् गुणज्ञः। स एव वक्ता स च दर्शनीयः सर्वे गुणाः कांचनमाश्रयन्ते ॥
५ बिना है सिवत के जिमन नुक्ता (करियावर) के लिए जेवर जायदाद गिरवे रखक या बेचकर अपवा करजा लेकर जिमन करना कोनसी चतुराईकी बात हैं ! मरनेवालेको ते १००) रूपेभी दान या शुभकार्यमें व्यय करने के लिए नहिं देते और नुक्तेमें सहस्रों रूपेक पानी करना कौनसे शास्त्रका वाक्य है; बिचारी बारह पन्द्रह वर्षकी विधवा कोनेमें बेठकर रो रही है और हम लडु खावें यह प्रेत यानि राक्षसी भोजन नहिं तो क्या है ? भाइयों में किसीवे लडू खानेमें अंतराय नहिं डाहता. अपने खुश के वक्त भोजन करना कौन मना करता है? केवल पीछेसे दुःख हो वैसा कार्य न करना चाहिए, इस्से कई बरबाद हो चुके हैं यह जातिवं अग्रेसरोंके विरपर छोडता हूँ.
सप्तम विषय भ्रातृभाव (संप) बढानेके विषयमे.
श्लोक २४ बहूनामल्पस्वराणाम् समवाप्येदुरत्ययः । वृणैर्विधियते रज्जुर्बध्यते दन्तिनस्तथा ॥