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________________ જૈન કોન્ફરન્સ હેરલ્ડ छठ्ठा विषय. हानिकारक रीवाज श्लोक २० ययोरेव समं शीलं ययोरेव समं कुलम् | तयोर्मैत्रीविवाहश्च न तु पुष्टविपुष्टयोः ॥ श्लोकः २१ अन्यायोपार्जितं द्रव्यं दशवर्षाणि तिष्ठति । प्राप्यतैकादशे वर्षे समूले च विनश्यति ॥ श्लोक २२ न जारजातस्य ललाटशृंगम् कुले प्रसृतस्य न पाणिपद्मम् । यदा यदा मुंचति वाक्यबाणम् तदा तदा जातिकुलप्रमाणम् ॥ शरमको भीयाहां पर शरम आय है. जो बेशरम हो वो न शरमाय है. (शुमारी. लोकनिन्दनिय, धर्मविरूद्ध जीवितमांस विक्रय करने जैसा हीन रिवाज जैनबन्धुमोंको अवश्य त्यागने योग्य है. क्यों की, प्रत्यक्ष देखने में आता है के जिसने यह अन्यायका पैसा लेया ऊस्की ऊद्योगबुद्धिका नाश हो कर दुःखी अवस्था में आगए हैं, कारण जानकर जरूर छोडना चाहीये तैसे ही दुर्गतिका कमजोर हैं. क्यों न वहां से पैदा हो ? लगे यह ठिक नहिं १ जैन बंधु कहते हैं कि हमारी कोम दूसरी जातियोंकी अपेक्षा हो! छोटे २ बच्चाओं का विवाह कर दिया जाता है, फिर दिलावर सन्तान २. कोई कहते हैं कि पुनर्विवाह के लिए जैनी भी चर्चा करने रन्तु यह नहिं सौचते कि ईस्का कारण वृद्धविवाह है. उसहीको रोकने की कोशिश की जाय, कोशिश क्या कि जाय? कन्याविक्रयकाभी तो भयानक रिवाज चल पड है फिर निर्दोष मबलाओं के दुःखकी कोन चिन्ता करे ! माबापको मतलब से काम है फिर भला हो कैसे !
SR No.536506
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1910 Book 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Dalichand Desai
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1910
Total Pages422
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size13 MB
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