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________________ . ३२ २८४. (३थुमारी. आचार्यपुस्तकसहायनिवासवित्तं बाह्याश्च पंच पठनं परिवर्डयन्ति । आरोग्यबुद्धिविनयोद्यमशास्त्ररागाः, पञ्चान्तराः पठनसिद्धिकरा भवन्ति ॥ १ धार्मिक शिक्षाके बिना सच्चे देव, गुरु, धर्म व दर्शन, ज्ञान, चारित्रका स्वरूप ज्ञात नहिं होता, इस्के बिना मोक्ष नहि. व्यावहारिक शिक्षाके बिना कृत्याकृत्य कैरे मालुम हो, वास्ते चारों वर्गकों प्राप्त करनेवाली एक विद्या ही उत्तम उपाय है, इस लिए मुख्य २ स्थलपर सेंट्रल कॉलेज खोलकर क्रमवार धार्मिक व व्यावहारिक शिक्षा लडके तथा लडकीयोंको दीजाय, और साथ २ औद्योगिक कला कौशल्य (हुन्नर) भी सिखाया जाय, और धार्मिक शिक्षामेंभी कलास यानि दर्जह कायम कर जैसे मिडल, एन्ट्रॅम आदि पास होते हैं वैसे ह परीक्षा लेकर पास करनेकी पद्धति जारी की जाय, ईस्से उम्मेद होति है कि विद्यार्थी दिलने महेनत करेंगे. ऐसेही बालाओंके वास्ते भी प्रबंध कीया जाय, ताकी शीवोन्नति हो, स्त्र शिक्षाकोभी बडी आवश्यकता है क्यों कि दुरस्त दो पहियों बिगेर गाडी नहीं चल सक्ती. - २ प्रान्त २ में छात्रालय (बोर्डिंग हौस ) खोलकर विद्यार्थीयों के लिए पुरा प्रबंध कियाजाय. चतुर्थ विषय निराश्रितोंकों आश्रय. श्लोक १७ वात्सल्यं बन्धुमुख्यानां संसारा हविवर्द्धनम् । अहिंसालक्षणो धर्मो संसारोदधितारकम् ॥ अफसोस है कि हम उत्तम तरह २ के भोजन करते हैं और हमारे कितनेक दीन सहधमी भाइ बहन अन्न वस्त्रके वास्ते भटकते फिरते हैं, तकलिफ पा रहे हैं ?नको तन मन धनसे प्रचलित उद्योगमें लगाकर धर्ममें दृढ करना धनिक धार्मिक पुरुषोंका मुख् कर्तव्य हैं. देखिये बिचारे छोटे २ बालकों कों जिनके मा, बाप प्लेग कोलेरा आदिसे मर गए उनकी कैसी दुर्दशा है आर ध्यान देने से मालुम होता है कि हमारी दयाका यह कैसा नमुना है, तैने ही अच्छे २ योग्य घरानेकी विधवा स्त्रीयां कुछ कार्य नहिं कर सक्ती वे आपना निर्वाह बहोत हष्ट से करती है इस
SR No.536506
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1910 Book 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Dalichand Desai
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1910
Total Pages422
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size13 MB
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