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સચ્ચા સો મેરા.
४ ध्यान दिजिये की एक मंदिरमें सहस्रों रूपेकी आय होती है और एकमें पूजन खर्च के लिएभी तंगी है, तो उस बडे मंदिरके खजानेमेंसे मदद देकर पूजाका प्रबंध क्यों : किया जाय? क्या वह परमपूज्य परमात्माकी मूर्ति नहिं हैं ?
द्वितीय विषय प्राचीन शास्त्रोद्धार तथा शिलालेख
. श्लोक १३-१४ श्रुत्वा धर्म विजानाति श्रुत्वा त्यजति दुर्मतिम् । श्रुत्वा ज्ञानमवाप्नोति श्रुत्वा मोक्षं च गच्छति ॥ लेखयित्वा च शास्त्राणि यो गुणिनः प्रयच्छति ।
तन्मात्राक्षरसंख्यानि वर्षाणि त्रिदशोभवेत् ॥ १ नजर डालिएकी हमारे परमोपकारी पूर्वाचार्य हरिभद्रजीसूरि व हेमचंद्राचार्य आदि हमारेपर कितने बड़े भारी उपकार किये कि क्रोडों शास्त्र लिखकर छोडगए, जिसमेसे बहोतर तो पहले नष्ट किए गए परन्तु हमारेमे तो यह ताकत रहा के अबजो बाकी रहे उनकोभी संभाल न सकें, या यों माहिए कि उनको उपयोगमें लाने योग्य हम न रहे तब उनकों किडे ऊद आदि काममें लायार नाश कर रहे हैं यह आंखसे देखा हुवा है, क्या अब पच्चीसमें तिर्थक होनेवाले हैं, सो पुनः सर्वज्ञ द्वादशांगी रचि जायगी? नहिं २ बंधुभों जागृत हो! ग्रंथोंका उद्धा कराके संभाल कर काममें लाओ यही अपना खास फर्ज है..
२ एक ज्ञानमंदिर अच्छे स्थलपर ऐसा होना चाहीए. की जिसमें शास्त्र जो वत्तमान में हैं वह कुलही एकत्र कर उसमें रखे जावें.
३ शिलालेखोंकी नकलें जगह २ की फोटो या मुसालेसे उतरवाकर एकत्रित करना चाहिए. जो वक्तपर काममें आवे और प्राचीन ऐतिहासिक बात ज्ञात हो.
तृतीय विषय धार्मिक तथा व्यावहारिक शिक्षा.
___ श्लोक १५-१६ न चौरहार्य न च राजहार्य, न भ्रातृभाज्यं न च भारकारी । व्यये कृते वर्धत एव नित्यं, विद्याधनं सर्वधनप्रधानम् ॥