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________________ १८१०) સચ્ચા સે મેરા. ॥ श्री॥ सच्चा सो मेरा. (लेखक लक्ष्मीचंदजी घीया) ॥ जैनम् जयति शासनम् ॥ श्लोकः ८. सत्यं चूयात् प्रियं ब्रूयात् न ब्रूयात् सत्यमप्रियम् । प्रियं च नानृतं ब्रूयात् एष धर्मः सनातनः ॥ . ६ जैन समाचार पत्रोंके मालिक व सम्पादकों को मैं यह सम्मति जाहिर करता कि यद्यपी कोई सत्य हो तो भी ऐसा आक्षेपभरा लेख प्रकाशित न किया जाय जिस धार्मिक व व्यवहा रक उन्नतिके कार्यमें उलटा धक्का न पहुंचे. आशा है के पूर्वोक्त प्रार्थना पर सर्व जैन बंधु लक्ष देकर अपनि श्रीमति महासभाव पक्षपाति बनकर । म्न लिखित विषयोंको अमलमें लानेकी कोशिश कर भविष्यका सुधार करें ताले मनुष्य जन्म सार्थिक हो. श्लोकः ९. आलस्यं हि मनुष्याणाम् प्राणपरहरणो रिपुः । रिपुर्दहति को काले आलस्य च पदे पदे ॥ प्रथम विषय तीर्थ व जिनमंदिर जीर्णोद्धार श्लोक १० श्रीतीर्थपाथरजसा विरजी भवन्ति तीर्थेषु बंभ्रमणतो न भवे भ्रमन्ति ।। द्रव्यव्ययादिह नराः स्थिरसंपदः स्युः पूज्या भवंति जगदीशमथार्चयंतः ॥
SR No.536506
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1910 Book 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Dalichand Desai
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1910
Total Pages422
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size13 MB
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