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________________ ا ر فر فر ق م می 24 0 ,, 925 रीवास // 2 // 4 छोटा 1 4 0 ., रामसपाबहा२ मावा 1 4 0 ,, समयाभाई पातांम 14 0 ,शासनाशीमा मा રદાસ કાસીંદ્રા 1 4 0 ,, રવજીભાઈ દેવરાજ ખાખર મોટી 0 0 ,, होसतरा सारी 3 1 4 0 ,, मानसंग टा२शी माणस 4 0 ,, तशा २।यह शिना२ 14 0 ,, साखानपाना२हास जायरा . 1 4 0 , પાછ ડુંગરચંદ કુકડી 1 4 0 ,, પિટભાઈ જાળ ભાત 1 4 0 ,, भन३५७ हवाय , 1 4 0 ,, સાહેબચંદ મહેતા ખીમેલ 1 4 0 ,, प्रेम भातीय २९वाडी 0 5 0 ,, 3भय १५तय भीमत 1 4 . भेससभीय . 14 0 ,, गावी सनहास मेडा वयं gi. १२खा 1 4 0 श्री सुमति २-नसुरी 1 4 0 શેઠ મનજીભાઇ ત્રીકમભાઈ કુંડલા . सायरी. 14 0 ,, सभीय हेक्यहमण 14 0 शे: शानदास श्रीमा तरी 14. गोवरधनहास गोपासायीन 14 0 ,, गुलमय शाम / 1 4 0 ,, ३५न्य समय ५२म , ગમલજી, વાલીઅર 0 12 0 ,, ભીમજી દામજી, કટવા - 2 4 0 ,, મૂલચંદ હકમચંદ ગડહીંગલાજ 1 4 0 ,, येसास दासाय सरसह 1 120 , सांचा 48 गतु२. . બાકીનું લીસ્ટ આવતા અંકમાં આપવામાં આવશે. एक बहुतही नवीन सुन्दर ग्रन्थ / जैनसम्प्रदायशिक्षा। श्वेताम्बर धर्मोपदेष्टा यति श्रीश्रीपालचन्दरचित.. इस महत्वके ग्रन्थ में स्त्रीपुरुषोका धर्म, पतिपत्नीसम्बंध, पाणिग्रहण, रजोदर्शन, गर्भाधान, गर्भावस्थास लेकर जन्म, यु.मार, युना और वृद्धावस्थातककी कर्तव्य शिक्षाये, आरोग्यरक्षा प्रा . भिकान. पूर्वरूप, उपशम, डाक्टरी और देशी रीति से रोगोंकी परीक्षा, चिकित्सा, पथ्यापथ्य, दुग्ध, घृत, तेल, दधि / तक्र, फल, तरकारी, कन्द, मूल, क्षार, नमक, शक्कर, गुड आदि सैकडोमयोंके गुणदोष, व्यायाम, वायुसेवन, आदि वैद्यकसम्बन्धी सम्पूर्ण बातोंका वर्णन बोलवस्तारके साथ सरल भाषामें कोइ पांचसौं पृष्ठोंमें लिखा है. इसके सिवाय, व्याकरण, सामान्यनीति, राजनीति, सुभाषित, ओसवाल, पोरवाल, महेसुरी, जातियोंकी उत्पत्ति, बाहर वा चौरासी जातियों का वर्णन, ज्योतिष, स्वरोदय, शकुनविद्या, स्वाविचार आदि अनेकानेक विषयोंकाभी इसमें संग्रह है। एक बडेही अनुभवी विद्वानने अपने जीवनभरके.. अनुभवोको इसमें संग्रह करके सर्व साधारणके उपकारके लिये प्रकाशित किया है। यद्यपि इसका नाम जैनसम्प्रदायसे सम्बंध रखता है, परन्तु यथार्थ तो इसमें जिन विषयोका वर्णन किया गया है, वे सबहीके लिये उपयोगी हैं। वैद्यक विषयकातो इसको एक अपूर्वही पुस्तक समझना चाहिये / हम प्रत्येक गृहस्थ से आग्रह करते हैं कि, वह इस ग्रन्थकी एक एक प्रति मंगाकर अपने यहां अवश्य ही रक्खें और गृहस्थाश्रमकी शोभाको बढाव / क्याकि इस्का " गृहस्थाश्रमशीलसौभाग्यभूषणमाला ""जो दूसरा नाम है, वह बिलकुल ठीक है। सब लोकोंके सुभातेके लिये रायल आटपेजी साइजके 800 पृष्ठके इस बडेभारी कपडेकी जिल्द बंधे हुए ग्रन्थकी कीमत केवल 3 // ) रुपये रखखी है। डाकमहसूल / ) आना... पुस्तक मिलनेका पता:-तुकाराम जावजी, निर्णयसागर प्रेसके मालिक-बम्बई. -: se
SR No.536506
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1910 Book 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Dalichand Desai
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1910
Total Pages422
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size13 MB
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