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________________ જૈન કોન્ફરન્સ હેરલ્ડ हम कौन हैं? www वाणीया कि श्रावक ? १२११ सिंह या शियाल ? Seঐ ( लुसाई ( लेखक - गुलाबचंदजी उढा एम. ए. ) लगा. इत्तफाक से मुकाबलेका • बहूत जैनी भाइयों की रूढी आजकल भैसी देखने में आई है कि, इस सवाल के जबा में कि " तुम कौन हो " वह फोरन कह देते है कि "अमे तो वाणीया हीओ. " गया यह "ब्द " वाणीया ” उनको जैन धर्म के साथ साथ उनके पुरुषोंसे उनको अमुल्य और लभ्य विरासत में मिला है. इन मशियों की दशा और गति उस सिंह के बच्चे के मुवाकहै कि, जो अपने टोलेसे अल्हदा होकर भेड बकरी के टोलेमें बचपन से परवरिश पाई और खुद को भेड बकरीवत् समझ कर उन का सा आचरण करने लगा और अपनी जाती दुभी को छोड़कर रोक भेडों के साथ भय से भागने दोडने सरा सिंह देखनेसे उसको अपना असटी स्वरूपका भान हुवा, और सिंहनाद करके अपन ज्य जमाया. आजकलके हम जैनीयोंकी उस 59 उल्फ बुवाय ( Wolf-boy. ) की की शा है कि, जो सिकंदरा के अनाथालय में रहा और मनुष्यका पुत्र होते हुवे बचपन से डीया ( Wolf) की सहाबतमें रहनेसे और उसहीके द्वारा परवरिश पानेसे अपना असली वरूप भूलकर सीधा पैरों के बल चलने के बजाय चार हाथ पैर के बल चलने लगा, मनुष्यकी भाषा सीखनेके अभाव में गूंगा रह कर भेडीयाके मुवाफिक चिल्लाने लगा. अफसोस ! यह ही वरूप हमारे क्षत्री पुत्र जैनियोका हमारे शासननायक वीर परमात्मा के अनुयायियों का हो हा है. वाणीयोंके सहवास में जियादा आनेसें वह अपनी असली हालतको भूल कर खुद या बन बैठे हैं. 66 जब उनसे पूछा जाता है कि, भाई साहब, सेठ साहब, आप "वाणीया " कैसे हैं तो प्रायः ह ही जवाब मिलता है कि, अपना धंधा रोजगार वाणिज्यका है. इस वास्ते " आपणे तो शीयाज छीऐ. " विचार करने की बात है कि, अगर वाणिज्य करनेसेही कोई वाणीया कह तो दुनिया भर में जितनी कोमें वाणिज्य करती हैं मसलन : - यूरोप, अमेरीका, आसट्रालीया गरह की वलायतें, हिन्दुस्थानके खोजा, मेमन, पारसी, बोरा बगरह, चीन, जापान की बलातें वगरह वगरह - सब वाणीया कहलावेगी परन्तु हम तो प्रत्यक्ष देखते हैं कि, यह सव
SR No.536506
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1910 Book 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Dalichand Desai
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1910
Total Pages422
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size13 MB
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