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________________ १६१०) એક આશ્ચર્યજનક સ્વમ. ॥ एक आश्चर्यजनक स्वप्न ॥ K---- (लेखक शेरसिंह कोठारी उपदेशक) अति मनोहर मालवदेशमें एक रमणीय मक्षी नामक पवित्र तिर्थ स्थान है. वहांपर प्रति वर्ष पौष वद १० को भेला हुवा करताहै. देश २ के यात्री लोग वहां आकर अपने जन्मक साफल्यता करते हैं. मैंभी अपने इष्ट मित्रों सहित वहां पर पहुंचा. शीतकाल होनेसें शाम वख्त सर्वभाइ अपने २ अगों पर नाना प्रकार के पोशाक पहीने हुवे. शरीर पर दुशाले ओर्दै हुवे, इधर उधर अटन करते हुवे, शोभायम न दिखते थे, मैं अपने मित्रों सहित वहारकी धर्म शालामें बैठा हुवा, ज्ञान गोष्टी कर रहाथा; कि रात्रिके बारा बजेका समय आन पहुंचा. और दुष्ट दर्शनावर्गिय कर्मने आन सताया. बस क्या पुछीये? उस दुष्टके आते ही अचेत होन पडा और निद्राके वश पूर्ण रूपसे होगया. पिछली रात को करीब चार बजे के वख्त स्वप्नमें क्या देखता हुं की मैं एक सुंदर उपवन (Gardens) के अंदर खडा हुं. वो बगीचा पूर्ण रूपसे हरा भरा हुवा नजर आता था. विविध प्रकारके पुष्प उसके अंदर खिले हुवे थे. कई प्रकारके फल परिपक्क हुवे हुवाओ मालुम होते थे. चारो तर्फ नाना प्रक रके पक्षाओंको मधुर वाणी चित्तको अलग ही आल्हा दंत कर रही थी.. महां! इस मुखसे आनंद मनाता हुवा जबकी मैं इधर उधर टहलने लगा तो थोडी दूर जाकर क्या देवता हुं की एक अति मनोहर विशाल और अवर्णनीय शोभावाला महल बना हुवा है, उस महलको बहारसें देखतेही मैं चकित होगया. और इच्छा हुइ कि भीतर जाकर देखें इस बातको सोचते २ मैंने उस मक नके अंदर प्रवेश किया. उस मकानको अंदरसे देखते ही मुझे निश्चय होगया कि, वह साक्षात इन्द्र भुवनसाही था उस महलमें बिजलीकी रोशनी Electric light लगी हुई थी. प्रत्येक कमरा बडे उदमा तौरसे सजाया हुवा था. बोचके दालान में टेबल तथा कुरशीये लगी हुइ थी, परंतु उफ. वो महल बीलकुल शुन्य था, परीदे जाततककाभी उसमें निवास नहीं था. उस समय मुझे इतनी ताज्जुवो हुइ की मैं अपने मुखसे उसका वर्णन नहीं कर सक्ता. खेर. अखीर मैंने उस महलके चारों ओरके किंवाड बंध कर दिये. और एक कुर्सिपर बैठ कर पुस्तक पढने लग गया. वो पुस्तक ऐसी मजेदार Interesting थी के थोडेही मिनिटोंमें मेरा चित्त उसीको तर्फ स्थिर होगया. और मआलुम होने लगा की मानो वह पुस्तक स्वयंमेव मुझसेंही बातें कर रही है. . परंतु सजनो सुनो तो! थोडीही देरमें मुझे ऐसा मालुम होने लगाकी बहारसे मुझे . कोइ आवाज दे रहा है. वो आवाज सुनतेही मैं एकदम चौंक पडा. सवब कि मेरा ध्यान
SR No.536506
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1910 Book 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Dalichand Desai
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1910
Total Pages422
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size13 MB
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