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________________ १८१०) नोटीस. - - - ॥ श्रीः ॥ * नोटीस धर्म करत संसार सुख धर्म करत निर्वान । धर्म पंथ साधन बिना, नर तिर्यच समान ॥ जिन पूजा आनन्द लखि, मनमें धरो हुलास । जैसे चातक मेघकी, निस दिन धारै आस ॥ श्री जैन तीर्थस्थान पंचपहाड़ व गांव मंदिर मुकाम राजगृहीजी जिया पटनाके भंडार की तरफ से --- नं० १ व जैन भाईयों से सविनय निवेदन है कि इन तीर्य पर यहां के पंडेलोग ही गुम स्ता पुजारीसाविक में थे जो उनका मतलब होता सो करत थे मैनेजर की कुछ दखरेख नहीं थः ॥ सं० १९६२ में इसतीर्थ का इंतजाम दूसरा हुवा जो अभीतक चलता है । नं० २ सतर्थ पर कई तरह की गोलमाल इस कारण से हुवा के जब पंडेलोगों को भंडार के काम अलग कर दिया तब उनों ने बहुत से झुठ झगडे किय लाचार उनपर मुकदमा चलाये गये सो सं० १९६४ आसीनमुदी १ से लगायत सं० १९६६ दना श्रावण मुदी १५ तइ चार मुकदमें करने हुव जिसमें ३ मुत्र दमा फौजदारी १ दावानी सो इन्में बहुत खरचा हुवा उन पंडे के झगडे से भंडार को बहुत नुकसानी पहुंची रन्तु धर्म के प्रसाद से चारो मुकदमें मैं श्री संघ की जंत हुई मुकदमा का हल लिखने से बहुत बढ़ जायगा इस वास्ते नहीं लिखसके जो भई सकदमें के हाल को जानना चाहै वो भंडार के मेनेजर के पास से बेफ लेकर बांच सकते हैं। ___ नं० २ . अब इस मुकदमें को दके १४४ जापते फौजदारी की रूसे उन पंों को जनम दर वा धर्मशाला वगैरहमें भाना बंद किया गया। नं. ४ अब बडे लोक जत्री भाइयों का तरह तरह से वहकाते हैं और उनका मतलब यात्रियों के दिल को खराव करने का रहता है हरतरह की शिकायत करते है सो उनके बहकाने पर कुछ खयाल न कीजियेगा क्योंकि उनके बहकाने का वजह सच ऊपर लिख चूकाहूं। नं. ५ तलेटी याने 'गांवके मंदिरजी में १ बकस संसे का रखा है सो जो जात्रियों के भेंट करना हो सो उस वकस मैं ड लदे और जो आभूषण छत्र चवर बरतन __ प्रमुख चडहाना सो . जो चढा कर उसको भंडार की वही में लिखद जो नकद्गी
SR No.536506
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1910 Book 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Dalichand Desai
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1910
Total Pages422
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size13 MB
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