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________________ વહ૮ માલવા પ્રાંતિક કોન્ફરન્સ હોનેવાસ્તે પ્રાર્થના. ૧૭] इस प्रांतिक कान्फरन्सके कायम होनेसे जैन समुदायका सुधारा होगा तथा धन हिन लोग जो कि कान्फरन्सके उत्सक है वै अपने प्रतिमें सर्व हाल ज्ञात कर किस अंकोर उसका उपयोग करना है वो कर सक्ते हैं-हर प्रांतमें धर्मकी वृद्धि होकर आशातना दूर होगी और जनरल कान्फरन्सकी पुष्टि होगी, हानिकारक रिवाजोका माश होगा, और उत्तमोत्तम काय्यौंकी वृद्धि होगी. हे सुहृदय बान्धवो, एकतो अपना यह श्रेष्ठ वर्ग पिछुडा पडा है. दूसरा आप लोग इसकी वृद्धिकी तरफ ख्याल ही नही फरमाओंगे तो उन्नति किस प्रकार हों ( नहीं) सक्ती हां उन्नतिका प्रभाव बढेगा और मन्तको नष्ट होजावेंगा. बान्धवो, इसी वर्गको अन्य वर्गोसें उन्नतिके शिखरपर लानेके लिये अपने कितनेक भ्राता उपाय कर रहें और चैतन्य कर रहें हैं उसी प्रकार अपन चैतन्य हो. अपने उपकारी भ्राताओंको सहायता देतो आशा है कि अपना यह श्रेष्ठ वर्ग शीघ्रही उन्नतिके शिखरपर चढेगा और जैनकी कानकारी मुलकोमे बजेगा-इस लिये प्रार्थी हू कि आप लोग शीघ्न चैतन्य हो इस सहान सभाको पुष्टिके लिये प्रान्तिक कान्फरन्स कायम करें. .. गौरके साथ देखा जाय तो गुजरात, मारवाड अन्य प्रान्त अपनी २ उन्नति के लिये उपाय कर रहे है और आंशा है कि उनके परिश्रमका फलं उन्हें मिलेगा. परखेदकि मालवा प्रान्तमे अभीतक कुच्छ नहीं कि प्रान्तिक कान्फरन्स कब और किस स्थलपर होगी और कोन इसके लिये उपाय करता है यह ज्ञात ही नहीं होता. इसी लिये विनय करता हुं कि अपने मालवा प्रान्तमें इस परमार्थ कार्यको स्थापित करनेका परिश्रम मालवाके श्री संघ लेकर अपने जैन जातिकी किसी प्रकार उन्नति हो और अपने जैन बान्धवोंको आनन्द मिले इस भांति उपाय करें... कदाचित्त कोई महाशयको खर्च अधिक होगा और इतना खर्च कौन उठावे. भ्राताओं, सकल संघ जिसकार्य्यको करना चहा तो वह शीघ्र होसक्ता है. परन्तु इसमें भी यदि न्यूनही खर्चको देखना हो और न्यून व्यय होने परही प्रांतिक कानफरम्सका उत्सव करना हो तो ऐसे मौकेपरकी जावेकि जहांपर कोई मेला (जात्रा) भरती हो और वहां अपनी समुदायके लोग इकठे होते हों उसवक्तमें अमंत्रण पत्र जिधर उधर भेजकर वहां पर सदर उत्सव किया जाये तो आशा है कि कम खर्च में ही काम हो जावे और समुदाय भी हर्षके साथ बहुत सम्मिलित हो सक्ती है क्योंकि एक पंथ दोयकाज होते हैं. (मेले और कान्फरन्स दोनोका लाभ ले सक्ते है.) मान्यवरों यहतो निश्चय है, कि " :
SR No.536505
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1909 Book 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Dalichand Desai
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1909
Total Pages438
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size11 MB
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