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________________ १८०७१ प्रमुखका भाषण. (1) नति धर्मपचार धर्मका गौरव पुस्तकों की सुलभता इतीयादि अनेक लाभके साथ इस शान्तिमय राज्य में जैन जाति की पताका उच शिखर पर फर्रावंगी। . जैन पर्व में छुट्टी. दुसरी कनफरेंस के २२ में ठरावमें सर्वश्रेष्ठ श्रीपयुंषन पर्वपर भाद्र शुक्ल ४ के दिवस अंगरेज सरकार तथा देशी राज्यमें छुट्टी नही होती इस विषयमें उन लोगोसें अवकाशकी प्रार्थना के वास्ते योग्य ध्यान दिया जाय, ऐसा कहा गयाथा । मेरी समझमें भाद्र शुक्ल ४ ओर शुक्ल ५ यह दोनु दिवसके वास्ते प्रार्थना करनी उचित है क्योंकि अपने सिद्धान्तके अनुसार पंञ्चमीही चौरासी गच्छका पवित्र दिवस है और दिगम्बर जैन मतका भी उसी तिथीसे दस लाक्षणिक व्रतका आरंभ होता है तथा अनामतमे भी ऋषि पंचमी के नामसे प्रसिद्ध है । इस हेतुसे पंञ्चमीके लिये भी प्रार्थना उचित है। सर्व धर्म संरक्षिका अपनी उदार गवर्णमेंट प्रायः कुल भारतवासी के धर्म और उत्सवके दिनों मे आफिस तथा अदालत कार्यालय आदिकी छुट्टी देती है ओर हिन्दुओ के वैष्णव और शैव मतके दोनो संप्रदायके पर्वके दिनोमें बंदि होती है । परन्तु हमारे उत्सबके दिनोमें कोई आफिस अदालत बंद नहीं रहते, इस लिये मुकद्दमा तथा अन्यान्य काम आपडने पर हमे बहुत कष्ट उठाना पडता है इस कारण गवर्णमेंट तथा देशी राज्यसे प्रार्थनाकी जायकी हमारे मुख्य २ उत्सव में अदालत कार्यालय आदि बंद रखें तो आशा है कि हमारी प्रार्थना अवश्य मंजूर होवेगी। बंगाल गवर्णमेंट ने वोर्ड के मेन्युयल पृष्ट ९३ में आज्ञा दी है कि " राजकीय कर विभागके उच्चाधिकारी कार्यकर्ताओं को योग्य है कि जिस तारिख को जैनियो के वार्षिक पर्व कात्तिक पुर्णिमा होने की संभावना हो उस दिन जैन आफिसरों को अपने कार्य में अनुपस्थित होने की आज्ञा दें । और यह भी उचित है कि जिनमें जैन मुद्दई मुद्दले तथा गवाहों का संबंध हो एसे मुकदमों की उस उत्सव के दिन में कोइ तारिख न नियत करें"। इस्से यह मालुम होता है कि अघावधि अपने मुख्य २ पबों में अवकाश पानेका उचित,रीति से आवेदन नहीं किया गया । कार्तिक पुर्णिमा अवश्य पर्व तिथि है लेकीन पर्युषणादि महान् पर्षों में छुट्टि के लिये प्रथम उघम होना चाहिये और सब प्रान्तों की गवरमेंटो से इसी तरफ सब जैन भाइयों को एक होकर प्रार्थना करनी योग्य है। धन्यवाद प्रिय बन्धुयो! इस समय नाना नगरोसें जातिहितके लिये अनेक क्लेश तथा हानि सहकर, इस महा सभामें आपलोगोको एकत्रित देखकर मझे अत्यन्त इर्ष होता है.LAथा
SR No.536503
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1907 Book 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchand Dhadda
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1907
Total Pages428
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size12 MB
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