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________________ १६०० प्रमुखका भाषणं. ५७ __अब हम लोगोको प्राचीन शिला लेखों के शोध संग्रह आर रक्षण पर विशेष ध्यान देना चाहिये । सनातन जैन धर्मकी प्राचीनता और गौरव सिद्ध करनेमें यह प्रयत्न प्रमाण कहां तक सहायक है सो सबको मालुम है । इसके सिवाय अनेक लुप्त ऐतिहासिक वृत्तांत इससे प्रकट हो सकते हैं। श्री संघ बैंक ॥ किसी जातिकी उन्नति करना सर्वाङ्ग उन्नति की आवश्यकता होती है । इस समय हम लोग कुल विषयोंक सुधार तथा उन्नतिकी चेष्ठा कर रहे है ॥ हमने अपने जातिको सिरमे कटि तक मोरस्सा लेवास पहना रक्खा है, परन्तु अभि तक उसे पैरके बल खड़े होनको अवसर नहीं दिया ॥ अर्थ परही जातीय उन्नतिका दारमदार है ॥ हमारे चंदका रुपया इधर उधर फैला हुया है और तीर्थीका भण्डार धर्मादे की रकम ( दृष्ट फण्ड ) आदि कीसी खाम जगहमें नहीं है । इन अर्थासे न तो पुरी आमदनी होती है और न इसका बन्दोवस्त सब जगह अच्छि तरह होता है । यदि ऐसे अर्थोंको जमा कर एक बक बाला जाय तो उसी अर्थसे ऐसी आमदनी हो सकती है कि जिससे पाठशाळा, जीणोद्धार निराश्रिताश्रय वगैरह अच्छे काममें लगे सकता है । ऐसे बैंकके मुनाफेकी आमदनीसे सबसे प्रथम जिल मंदिर वा जिस धर्म खातेसे वह रुपया एकठा होकर बैंक स्थापित किया गया है उनका एक नियत हिसाबसे व्याज दिया जाय । इसके पीछे जो कुछ मुनाफेकी रकम बचे उसके नियत मासिक हिस्से होकर कुछ हिस्से अछे कामाम लगाये जाय और एक हिस्सा बैंकके पुंजीमें डाली जाय । मैं समझता है कि अगर इस तरह से अच्छे बंदोबस्तके साथ बेङ्कका काम शुरु किया जाय तो अनेक प्रकार की उन्नतिकी आशा है । युरोप अमेरिका आदिके निवासीतो इस बातको भल भांति समझ गये है, कि धाम्मिक फंडका द्रव्य कमीटीके हाथ में रखने से बहुत अच्छी तरह धर्मका कार्य चल सकता है । इसी लिये वे लोग एक पैसेसे लेकर करोड रुपये तक दान देंगे तो धार्मिक कमीटीको ही देंगे । उचित है कि हम लोगभी उस आदर्शपर योग्य ध्यान देकर अपनी उन्नतिमें कदम बढावें । जीवदया। जीवदया हमारे धर्मका पहला कर्तव्य और इस जीवनका प्रथम व्रत है। हमे चाहिये कि हम उस्को ओर पुरा पुरा ध्यान दें । वह देखिये जानवर कसाइयोंके पंजमें पड कर त्राहि त्राहि चिल्ला रहे है । उधर देखिये, हत्यारे शिकारी गरीब परंदों. को पकडनेके लिये फन्दा लगा रहे हैं भाइयो ! यह अवसर त्यागना नहीं चाहिये । जानवरोंके बचानेमें बटि बद्ध होके गउवों तथा अन्यान्य जीवोंकी रक्षा करनेके लिये कलकत्ता बम्बइ आदिमें स्थापित पिञ्जरापोलके ढंगपर हर एक नगर और ग्रामके पञ्चयती मन्दिर वा दादा बाडिके साथ पिञ्जरापोल खोलनेका प्रबंध करना चाहिये । ऐसा हर तरहका उपाय होना चाहिये जिसमें जीवोंकी रक्षा हो, इसी विषयमें हम अधिक कुछ कहना नहीं चाहते । कारण हमारे पूर्वजोंने इस बारेमें बहुत कुछ कहा है, और इस बारमें हर साल ठरावभी होते आये हैं। केवल जीवोंको मौतके हाथसे बचानसे SAHARSarikVL2
SR No.536503
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1907 Book 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchand Dhadda
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1907
Total Pages428
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size12 MB
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