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________________ જૈન કે!ન્ફરન્સ હેરલ્ડ. [kyourft. नति की थी । देखिये, शिल्पाको छोडकर हमारी कैसी अवनति हुई है और जा न उसे ग्रहण कर उन्नतिक जिस उब शिखरपर अरूद्ध है । अंगरेज जी पकाअपनेको सभ्य जगतका अदी बताते हैं, वे भी जापान के किर ते । जमी थोडे दिनको पात है कि अंगरेजने यह प्रकिया है कि एक फौजी अफसर जापानमें एक पिया सिखनेके लिये भेजे जाय। सबको २० हमारे का यह सिखाना चाहिये | ऐसी शिल्लका जिसरी हमारे धर्माका हाकि सिखाना उचित है । सेवळ काज तथा स्थापन करनेकी आप लोगोसे में यह किया गया है। अब एक शिल्पकला के स्कूल साळ प्रबंध करना चाहिए। मूल कमेटी गांडेत से में विचार कर स्विक हानि नहीं पहुंची। वह कोटी उमूडी की पठन पाठन तथा आलुल करेगी, समरि बजरी गायव न होना चाहिये । है कि उस बसचित होत परीट विकास लकीको उल्लेख साथ य एक की हमारी को जाय की पांडा होनेस जीवन सकती करें क की शिक्षण पर गती है | यदि पंचित रहते हैं । हव्य के किसी तब उस वृक्षार्थ नावासह विकास है तो उसको क्या दशा होगी शिक्षित होनेसे अनेक प्रकारको कुरितियां जो हम प्रचलित है हैं, और उनके अशिक्षित रहने पर चाहे हम कितने खास परंतु घरमै जानेले २ फिस हो जाती है। क्योंकि गृहस्थों के तथा बालक बालिकायका शिक्षण चादि स्त्रीयों के हार भी कोई महाशय स्त्री शिक्षामें दोष प्रदर्शित करते हैं । ययपि वहां इस विषय की समर्थ ader समय नहीं है तथापि इतनाही कह देना काफि होगा कि विधा या का सम्मति कदापि हानिकारक नहीं हो सकती; यदि यह है तो पुरुषों के लिये जी हानिकारक क्यों नहीं ? हां, यह तो आवश्यक है कि पठन व्यवस्था वा शालाओंकी उतमोत्तम शुद्धस्थिति करनेका पूर्ण उद्योग होना चाहिये | विद्याही सब दोष दूर कर सकती है । जैसा कि किसी कविने कहा हैः कार्य है। की सम्य जाता है. " जाडयंधियो हरति सिंचति वाचि सत्यं, मानोन्नतिं दिशति पापमपाकरोति । लक्ष्मी तनोति वितनोति च दिक्षुकीर्ति, किं किं न साधयति कल्पलतेव विद्या ॥ इत्यादि विद्या अनेक गुण हैं । तव स्त्री जाति उस्मे क्यो बञ्चित रख्का जाय और इतिहास कथाओंको अवलोकन करने अनेक श्राविकायोंके पंडिता होनेका प्रमाण मिलता है । इंग्लंड आदि देशोंका सुधार अधिकांश में स्त्री शिक्षा ही से हुया है सो किसी बुद्धिमान पुरुषको अबिदित नही है ।
SR No.536503
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1907 Book 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchand Dhadda
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1907
Total Pages428
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size12 MB
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