SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 271
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १८०७] भुमि विहार तथा आ-३२-ससे साम. [२३७ मुनि विहार तथा कान्फरन्ससे लाभ. यह देखकर अति खेदित होना पडता हैके मालवा-मेवाड प्रान्तकी स्थिति धार्मिक विषयमें अति निर्बल है अगर उपदेशक भेजकर ईनकों शिक्षाभी दि जायतो एक बड़े वक्तकी जरूरत है. ईससे सहल यही मालुम होता है के हमारे परमपुज्य मुनिराजाओंसे व सावायोंसे प्रार्थना किजाय के अन्य तरफ न पधारकर विशेषकर मालवा-मेवाडमे पधारकर उपदेश देवें के जीससे हमारे जैन बधुओंकी स्थिति ठीक हो जाय. साध्वीयोंके उपदेशसे स्त्री वर्गकों ज्यादा लाभ पहुचना संभव हे देखिये हालहीमें हमारे परमपुज्य मुनिमहाराजश्री १००८ श्री राज्यविज्यजी महाराजके विहारसे कैसा लाभ हुवा वो जैन बन्धुओंके हितार्थ प्रकाशित कर कर उक्त मुनिश्रीकों अंतःकरणसे धन्यवाद देतेहैं के जिनकी कृपासें यह शुभ कार्य हुआ. ... मनासा (होलकर राज्य) के पास एक उदयपुर राज्यका वाघजी कापिपल्या नामक ग्राम है वहांके सर्वाधिकारी श्रीयुक्त रावतजी श्री जीवणसींहजी साहब हैं, वहां उक्त मुनिश्रीका पधारना हुवा; श्रावकोंने आपका उपदेश सुनकर मंदिरजीका जीर्णोध्धार करवाया और क्लस ध्वजा दंडादी चढ़ानेका मुहुर्त अषाढ कृष्ण २ का निमित कर सर्व जैन बन्धुओंकों आमंत्रण पत्र भेजा. उक्त समयपर सर्व जैनबन्धु जो दुर दुरसे जैसे प्रतापगढ, नीमच, जावद, निम्बाहेडा, कुकडेश्वरादिसे (करिब ६००--७००) पधारेथे. एकत्रीत होनेपर बडे समारोहके साथ उत्सव किया गया. आमदानी करिब ५५०) की हुई, वर्णन कहांतक किया जाय, ढंग निरालाहीथा. ज्यादा खुशी ईस बातकी थी के श्रीयुक्त रावतजी साहबने सपरिवार पधारकर जैन संघकों सुशोभित कीयाथा. उक्त जलसेका प्रबन्ध वहांके उदयपुर निवासी मिस्टर कन्हैयालालजी साहेब कामदारका प्रसंशनिय था. उस दिन सायंकालको रथ यात्राका जलूस बॅन्ड, वाजा वाजींत्रादि सरकारी कोतलनकोर निशानसे सुशोभीत होता हुवा श्री युकत रावतजी साहबके महलोंमे गया स्थान बहुतही रमणीक है. उसी दिन रातकों सभा करना निश्चय हुवा. __स्थान महलमें श्रीयुक्त रावतजी साहबके प्रमुखपणेमें एक बडी सभा की गइ जीसमे सुधोरे सम्बन्धी जैन सिलावट छबाजी नीमच नीवासीने वाजींत्र द्वारा गायन कीया. १ गांधी देवराजी'साहब प्रतापगढ-मालवा नीवासीने विद्या प्रचारके विषयमें जोशिला भाषण दिया. घीया लक्ष्मीचन्दजी साहब प्राविन्शीयल सेक्रेटरी श्री जैन श्वेताम्बर कान्फरन्सने धार्मिक तथा व्यावहारिक सुधारेके विषयमें बडा उत्साहभरा जोरदार व्याख्यान दीया और कान्फरन्सके ठहराव भाषणद्वारा प्रकट कीये, यह सुनकर सर्व सज्जन
SR No.536503
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1907 Book 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchand Dhadda
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1907
Total Pages428
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy