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________________ १९०६] श्री मारवाड प्रान्तिक कोन्फरन्सकी संक्षिप्त रीपोर्ट. २५९ कोनफरेन्सकी काररवाई शुरू होभेपर " श्री फलोधी तीर्थोन्नत्ति सभा" के जनरल सैकरेटेरी मिस्टर गुलाबचंदजी ढढाने दरखुवास्त की कि अपने सभाके प्रमुख बीकानेर निवासी सेठ पूनमचंदजी सावण सुखा कई अनिवारणीय कारणोसें इस जलसेमें शरीक नहीं हो सके इस लिये उनकी जगह रीसेपशन कमीटीके प्रमुखका पद धारण करनेको और उनका काम करनेको उनके सुपुत्र कुंवर दीपचंदजीको नियत किये जावें, इसकी ताईद मिस्टर टोकरसी नेणसीने की कि जो सर्वानुमत पास हुई. इसके पश्चात कुंवर दीपचंदजीनें प्रमुखका पद धारण करके एक पुर जोश भाषण दिया जिसका सारांश यह है कि:अपनी महा सभाके नियमानुसार पेथापुर और आमलनेर में तो प्रान्तिक सभायें हो चुकि अब यह सभा मारवाड प्रान्तकी इस जगह होती है यह प्रयास मारवाडी भाईयोंको बहुत ही स्तुति पात्र है और मुझे आशा होती है, कि भविष्य इसका अच्छाही होना है. हमारे बडेरे संघ निकलवा कर आपसमें सम्प बढाते थे हम लोग कोनफरेन्सके नामसे जमा होकर उनहीके रास्ते चलते हैं इस असार संसारमें भ्रमण करते करते मनुष्य देह, उच कुल, जैन धर्म, अच्छे पुण्यके उदयसे मिलता है, इसही भवसे मोक्ष. प्राप्त हो सकता है परन्तु मोक्ष आसानीके साथ नही मिल सकता है श्री संघकी तन, मन और धनसे सेवा करनेसे मोक्षका रस्ता मिल सकता है. और इस कोनफरेन्स द्वारा यह भाक्त बहुत अच्छी तरह हो सकती है. अपने जाति और धर्मकी उन्नत्तिके वास्ते सबसे पहिले अपने अंदर सम्पकी आवश्यक्ता है, इसहीके साथ साथ अज्ञानताको मिटाकर सत्यज्ञानका प्रचार करना जरूरी बात है, लडके और लडकीयोंको धर्मकी शिक्षा देना वाजवी है. जीर्णजिनमन्दिरों और भंडारोंका उद्धार, निराश्रित जैनि योंको आश्रय, खोटे रीतिरिवाजोंका त्याग करना बहूतही जुरूरी है. अंतमें यह प्रार्थना है कि जिस तरह नावको खेणेके वास्ते अच्छे मल्हेकी जुरूरत है वैसेही इस नाव रूपी कोनफरेन्सका काम चलानेको मल्हा रूपी किसी हुशयार धर्मात्मा और ज्ञानी सज्जनके प्रसिडेंट होनेकी आवश्यक्ता है. ___ इसके पश्चात जोधपुर निवासी महता रतनराजजीने दरखुबास्त की कि इस प्रान्तिक सभाके प्रसिडेंठका पद धारण करनेको फलोधी निवासी सेठ फूलचंदजी गोलेछासे बीनती की जावें, इसके ताईदमैं मिस्टर गुलाबचंदजी ढढ्ढानें सेट फूलचंदजीके गुण ग्राम किये और जाहर किया कि इनका पैसा धर्ममें खर्च होता है. इन्होंने दो तीन बर्ष पहिले श्री सिद्धाचलजीका संघ निकलवाया था, इस लिये इस कोनफरेन्सके प्रमुखके लिये उक्त सेठ साहेबकी चूंटणी की जावे इस दरखुवास्तका अजमेर निवासी कुंवर कल्याणमलजी ढहानें अनुमोदन किया जो सर्वानुमत पास हुई. तालीयोंके हर्षनाद बीच सेठ फूलचंदजी गोलेछाने प्रमुखका पद स्विकार करके एक लिखा हुवा मनोरंजक भाषण दिया कि जिसका मुखतसर खुलासा यह है की:-आपनें जो इज्जत मुझे दी है इसका में शुकर गुजारहूं. कोनफरेन्सके नियमानुसार दो जगह प्रान्तिक सभायें हो चुकीं राजपूताना प्रान्तिक सभाकाभी कई दिनोंसे विचार चलता था, अब " श्री फलोधी तीर्थोन्नति सभा" के प्रयाससे इस पवित्र तीर्थभूमीपर यह मारवाड प्रान्तिक सभा इकट्ठी हुई है; इस सभामें सबसे पहिले अपने अंदर सम्पकी वृद्धि करनेकी आवश्यक्ता है, अगर सम्प नहीं होगा तो जिस तरहपर कुसम्पी ५०० सुभटोंने राजासे अपमान पाया, उसही तरह अपनी समाजकाभी हाल होगा, हिन्दूओं, मुसलमानों और मरहटोंका राज्य कुसम्पसे भ्रष्ट हुवा, इस लिये इस कोन्फरन्सद्वारा अपनी समाजमें सम्प बढाकर उन्नति करनेकी अत्यावश्यक्ता है.----यद्यपि बडी सरकारकी तरफसे मर्दुम शुमारी हुई है तोभी अपनी समाज, और मन्दिर वगरहकी पूरी हालत मालूम होनेके वास्ते जैन डाइरकटरीकी आवश्यक्ता है. व्यवहारकि और
SR No.536502
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1906 Book 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchand Dhadda
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1906
Total Pages494
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size13 MB
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