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________________ वास्फरन्स होल्ड ....... जुलई वगैरहसे सुशोभित की गई. दो घंटे व्याख्यान हानीकारक रीतरीवाज और विद्याके बारेमें मेंने दिया. ४०० पुरुष और बाई हाजर थी. दुसरी रातको भी सभा इसी प्रकार हुई. श्री पंचने एक मते नीचे माफक ठेराव कियेः१. जानवरांकी पांखाकी टोपी, कचकडाकी चीजें, और चमडाके पुठे वापरवे नहीं. २. होलीकी पूजा करनी नही, हाथसें होली सलगाना नहीं, मुंडां गाना नही, धुलेरी खेलनी नहीं. ३. सीलीसातम आदि मिथ्यात्वी पर्व बने जबतक नही पालना. ४. लग्नमें दारुखाना छोडना नहीं, पातर [ वेश्या ] बुलाना नही. ५, कन्याविक्रय बने जबतक नही करना और जैन विधीसें लग्न करनेकी हिदाया करते रहना. लग्नविधीके पुस्तक मंगाकर ब्राह्मणों को देणा. ६. मरनेके बाद पीछली रातको वासीपला लेना नही जिस बाबत गाममें हाका कराना. ७. जैन कोन्फरन्सकी सभामें गामकी तरफसे प्रतिनिधी भेजने. ८. पोसा, उपवास आदि करनेके बाद पारणा किये विना लुगायां छाणे लेनेको नही जावे. ९. बने जबतक अकेले जिमना, और एठा छोडना नही. १०. मृत्युके बाद पुन्यार्थके रुपये निकाले होवे सो वारा महिनाके अंदर खर्च कर देना. ११. हिंदी, इंग्रेजी और धर्मशास्त्र पढानेके लिये एक जैनपाठशाला खोली जावे. _जिसके लिये नीचे माफक ठराव किये. ( क ) एक टीप चालु करना. (ख ) बीअखपर लागा डालनेकी बात विचार तलव छोडी गई. - (ग) मृत्युके बाद जो रकम पुन्यार्थनिमीत निकाली जावे जीसमेंसे चौथाई पाठशा लाके फंडमें लेना. (घ) वहीवट करनेको नीचे माफक एक कमीटी मुकरर की गई. शा. रायचंदजी लखाजी. | सा. खुमाजी कलाजी. शा. भुताजी दोलाजी. सा. हंसराजजी रुपाजी (सेक्रेटरी). शा. रायसिंगजी कानाजी.. सा. रुघनाथजी फुआजी.
SR No.536502
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1906 Book 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchand Dhadda
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1906
Total Pages494
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size13 MB
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