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________________ १९०६ जैनागम पास जायपुर. १५ नहीं है. और इसमें विशेष उपकार सम्वेगीजी महाराज श्री १०८ श्री शिवजी रामजीकारी है कि जिनकी केवल देखरेखकेही कारणसे ऐसी अवस्थामें भी इसका आजतक अस्तित्वः, बना रहा कि जो थोडेही उद्योगसे फिर उन्नतावस्थाको प्राप्त हो सका है. फ़रवरी मासके, प्रारंभसे इसकी आयकी वृद्धिके हेतु डेपुटेशन जातीय धर्म स्नैहियोंकी सेवामें लेजाया गया, तो एप्रिल मासके अखीर तक ३८) रु. मासिककी आय हुई, सहायक महाशयोंके नामक पहिले प्रगट हो चुके हैं उनके अतिरिक्त महाशय फूलचंदजी धांधिया. सहायक श्रेणीमें और.) बढे हैं.--१ अप्रेलसे संशोधित नियमावली और पठनक्रमके अनुसार कार्यप्रारंभ किया। गया. जिसमें दो अध्यापक पहिलेसे थे, दो अध्यापक एक आङ्गठभाषाके मास्टर और एक भृत्य और रंक्खेगए, मईमासके प्रारंभमें पाठशालामें छात्रों की संख्या ३३ (३१ जैन और २ अजैन ) रही, इन दिनों में बाबू अर्जुनलालजी सेठी बी. ए, बाबू मालीलालजी कासलीवाल बी. ए., मास्टर पांचूलालजी काला, मास्टर गुलाबचंदजी पाटणी, अरु मिस्टर जैन वैद्यजीनें . समय २ पर विद्यार्थियोंको ऐतिहासिक व सदाचरणके विषयोंपर मौखिक शिक्षा दी, जिसमें विद्यार्थिओंकी वक्तृता शक्ति, उत्साह, सदाचरण और घठनमें रुचि अधिक तर वृद्धिकी प्राप्त हुई. पठनक्रम जो प्रकाशित किया जा चुका है उसमें धर्मग्रन्थोंमें यद्यपि एकही आम्नायके ग्रन्थोंका नाम लिखा गयाहै, तदपि यह पठनक्रम" जैनविश्वस्तमित्रमण्डल" जयपुरने बनायाहै और उसमें यहही वात रक्खी है कि प्रत्येक आम्मायके अनुसार धर्मग्रन्थ पढाए जाय, किन्तु ग्रन्थ उसी आशयके होंगे. जोकि प्रकाशित ग्रन्थों में है अर्थात् जिस ग्रन्थमें द्रव्यचर्चासम्बन्धी विषयहै, तो उसके स्थानमें और २ आम्नायोंके वेही ग्रन्थ पढाए जावेंगे, जिनमें द्रव्यचर्चाही हो. इसी नियमके अनुसार पाठनकार्य प्रारंभ किया गयाहै. ...... इन तीन मासमें इसकी आय इस प्रकार हुई, मासिकचन्दा खातें ५९।) भेटखाते २॥) तफावतजुर्माना खाते ।)1, ध्रुवक्रोषसे १९६०॥, पुस्तकों खातें १=), कुल १७९॥=n. और व्यय पुस्तकों खाते ११।०॥, कागजोंकी छपाई १६॥=), सामान आदिमें ४१॥ अध्यापकोंके वेतनमें ८९ ॥, कुल १५९।।। हुए शेष २०=) रहे हैं. ..... वाचकवृन्द ! आप इस कुल कार्यवाहिसे परिचित होकर यह नतीजा अवश्य निकालेंगे कि जैनियोंकोभी अपने छात्रोंको पढानेकी रुचि उत्पन्न हो गई है, और नवीन प्रबन्ध और पठनक्रम अत्यन्त रुचिकर है कि एक. मासहीके कार्य प्रारंभमें जैन छात्रों की संख्या द्विगुणसे अधिक हो गई. हमको इस. वातकाभी परम, हर्ष है कि जयपुरीय श्वेतांबर जैन, जातिभा पठन पाठनकी रुचि वृद्धिको प्राप्त होने लगीहै कि जब हम पहिलेकी. जैन छात्र, संख्याको देखतेहैं. तो १५.छात्रोंमें श्वेताम्बर १२५ यतिशिष्य ३, दिगन्बर २.थे और इस ; समयकी जैनछात्र संख्या ३.१ में श्वेताम्बर १३ यतिशिष्यः २ दिगम्बर ६. हैं. भविष्यतमें यह
SR No.536502
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1906 Book 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchand Dhadda
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1906
Total Pages494
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size13 MB
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