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________________ MAMT - नंबर ग्रंथ नाम कत्ता व्याख्या श्लोक | व्याख्या कर्ता श्लोक रिमार्क प्रभानंद सूराचार्य पं. धनपाळ २१२५ | २२५ निम्मळनदेवि इत्या. | वीतरागस्तव वृत्ति वीरस्तव वर्ग २ जो. सिद्धसेन स्तुति सिद्धसेन ८५० (विंशतिद्वात्रिंशिका) शोभनस्तुति शोभन काव्य ९६ वृत्ति | धनपाळपंचाशिका पं. धनपाळ संक्षित वृ. ४ | बप्पट्टि स्तुति बप्पभट्टि काव्य ९६, वृत्ति १५० पं. धनपाल प्रभानंद ६४० सहदेव ७३५ नरेंद्रमौलि इत्यादि च्यवनादि १५ वस्तुवाचक च्यवनादि ३९ दि.प्रभाचंद्र १५४. स्वयंभुवा इत्यादि GK ww एद्रस्यवइत्यादि जनप्रभ. | २२३७ सं. १३६', वर्ग ३ जो. १ चतुर्विशतिजिन | - दरेक गा. स्तव २४ मळ.देवप्रभादरेकगा. समंतभद्र वृ. ४ जनेनयेनस्तुति ५ धरणोरुगेंद्रस्तव ६ लघुस्तव सतस्मरण १ अजितशांति १२ भयहर(नमिऊण) ३ उवसग्गहर ४ तंजयउ सिग्धमव ५ मयरहियं ६ उळ्ळासिक्कम सोमतिलककृतस्तवनो सोमतिलक यत्राखिल लघुवृत्ति श्री तीर्थराज जयवृषभ स्तुतिशस्ता ० ० ० < < AK ० ० इययू ० ० देवेंद्ररनीशं श्री शैवयं
SR No.536502
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1906 Book 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchand Dhadda
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1906
Total Pages494
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size13 MB
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