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________________ و जैन कॉन्फरन्स हरेल्ड... [ जनवरी * के जलसेमें शामिल होकर सुधारे और इतफाकका मोका मिलता-परन्तु हिन्दुस्थानमें जोतिप " बलवान है दोनों समाजोंनें, इनही दिनोंके श्रेष्ट समझकर अपने जलसे मुकर्रर करदिये-अब ॐ संभव है कि दोनों समाजोंके समझदार मनुष्य जोतिषियोंसेभी जियादा बलवान निकलकर * कॉन्फरन्सके पहिले या पीछे परस्पर मिलकर इत्तफाक पैदा करें-घरकी फूट घरको खाती है, " आपसमें कट कंट भरनेसे खुदकी ही हानी होती है पूर्व कालमें एसी लडाईयें हो चुकी है छ परन्तु उनका परिणाम कुछ ठीक नहीं निकला है अब समय ऐसा नाजुक आ गया है कि जिसमें इत्तफाक की बडी भारी जरूरत है. हम आशा करते है कि दोनूं समाजके समझदार * मनुष्य आपसमें मिलकर जरूर किसी अच्छे विचारपर आगे कि जिससे भविष्य कालमें कुछ बहतरी की सूरत पैदा हो. + दंदियावों का जिकर करते हुवे हमको दिगाम्बर समाज परभी जुरूर ध्यान देना भचाहिये. हमारे जलसों की जैसे दिगाम्बर समाजमेंभी सालाना जलसे होते हैं और समाज के सुधारे बधारे पर पूरा विचार किया जाता है. जैन यङ्ग मैन्स एसोसिएशन की यह कोशिश है कि श्वेताम्बरों दिगाम्बरों में जो नाइतफाकी हो रही है वह मिटादी जावे और दोनों फिरकोंमें सम्प बढाया जावे. समयानुसार यह कोशिश बहुत ठीक है और इस इत्तफाक के बढनेका प्रथम जरिया यहही है कि एक फिरके की समाज के जलसेमें दूसरे फिरके को समाजवाले 'अवश्य शामिलहों चुनाचि इस आखरी जलसे दिगाम्बरियोंमें श्वेताम्बरी शामिल हुवेथे इसही तरह दिगम्बर सम्प्रदाय वालों को चाहिये कि श्वेताम्बरियोंके जलसे में शामिल होकर आपसमें इत्तफाक बढावे. स अबतकके जलसों में देखा गया है कि तीन दिन या चार दिन जलसेमें विविध विषचुयोंपर विचार चलता है, अछे २ वक्ता भाषण देते हैं. श्वेताम्बरोंके दिलोंको अपनी तरफ खेंच दलेते हैं परन्तु सिवाय सुनने सुनाने के कोई समय ऐसा नियत नही किया जाता है कि जजिसमें एकठे होकर उन बातोंपर विचार कि जिनके सबबसे तीन दिन के जलसे का काम आयंदा साल भर तक ठीक चलता रहै. पाटन कॉन्फरन्सके समय इस कार्यपर अवश्य ध्यान होदनेका मोका है. हमारा प्रथम कर्तव्य यह है कि हम आयंदा का प्लैन सोचें और उसके मेंसुवाफिक महासभाका काम चलावें. चारों जनरल सेक्रेटरीयों को काम करते हुवे एक अरसा पहोगया उनके कामपर गौर करके फेरफार करना मुनासिब है, हर सजनको चाहीये कि इस कवेषयपर पूरा तय्यार होकर आवे और आयंदा इस तरहका रस्ता पसंद करे. आयंदा कोम्फरन्सका जलसा किस जगह हो यह बात अगरचे सबसे पीछे लीगई है थारन्तु सबसे अवल गोरतलब है-कॉन्फरन्सके खैरखुवाहों को इस बातपर अवश्य ध्यान कर इसका निर्णय पहिलेसे ही करना उचित है.
SR No.536502
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1906 Book 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchand Dhadda
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1906
Total Pages494
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size13 MB
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