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________________ • देलवाडा प्रतिष्ठा महोत्सव देलवाडा प्रतिष्टा महोत्सव. निन्दन्तु नीतिनिपुणा यदि वा स्तुवन्तु लक्ष्मीः समाविशतु गच्छतु वा यथेष्टम् ॥ . .. अद्यैव वा मरणमस्तु युगान्तरे वा न्यायात्पथः प्रविचलन्ति पदं न धीराः ॥ १ ॥... देलवाडा ( देवकुलपाटण) देश मेवाड तालुके उदयपुर. इस गाममें मन्दिरजी तीन है. उनका जीर्णोद्धार होकर-प्रतिष्टा मिती वैशाख सूदी २ द्वितीया बुधवार संवत् १९६३ ता. २५।४।६ को बड़ी धूमधामसे कीगई; प्रतिष्टा महोत्सवमे मनुष्य छ हजार आसरे इकठे हुएथे. मारवाडनिवासी यतिराज हेमसागरजीको पञ्चोंकी निमन्त्रणसे तथा शेठ लल्लुजी जैचंदभाईकी योजनासे सन्मानपूर्वक बुलवाकर शास्त्रके मुवाफिक यथाविधि प्रतिष्टा महोत्सव करागया था. उस वक्तका आनन्द देखनेसे मालूम होवे लिखने में नहीं बनता. जिधर देखें उधर सेंकडों श्राविका लोकोंका गायन ध्वनि सुणाई देताथा. और श्रावक लोक भक्तिके साथ भगवानके गुणग्रामको तालमृदङ्गादि बाजोंके साथ मीठे स्वरसे गायन कर रहेथे. यति लोक सप्तस्मरणके घोषसे यात्रिक लोकोंके कानोंमें मधुर शब्द सुनाकर मानो संसार मोचनका उपदेश देरहेथे. ठोरठोर श्रावक समुदायोंमें जाकर प्रतिमापूजन सिद्धांतमें कहागया है, इस विषयमें हेतु दृष्टांत युक्तिप्रयुक्ति कहकर और कान्फरसके कर्तव्योंपर भाषण पंडित पन्नालाल शास्त्री देरहेथे उस समयमें सब लोकों का चित्त निर्मल होगयाथा, और लोक जयजयकार शब्द कररहेथे. नगारोंकी चोपें झडरहीथी, सरणाईकी सणसणाहट चलरहीथी. फूलोंकी वरखा होरहीथी, और आनंदसागरकी लहेर उठरहीथी, भगवान गद्दीपर विराजमान भये उस समयका अनिर्वचनीय आनंद था. और उसी समय शेट लल्लुभाईने अपनी सुशीला भार्याके साथ शीलव्रत स्वीकार किया. धन्यहै, उनके मातापिताको के जिनके पुत्र शीलव्रत लेकर मनवचनकायासे पालते है. और देव द्रव्यको जहर समान समझकर अपने काममे लाते नहीं व उत्तम पुरुष समझे जाते है. आज कल एसा पुरुष विरला होते है, लेकिन अब कान्फरसके उद्योगसे तथा शिक्षणके प्रभावसे लोक धर्मशील ईमानदार आदि सद्गुणी होजावेंगे, एसी आशा है. . . पहले ये मंदिरों महादुर्दशामेंथे, पापात्मा मनुष्य दुष्ट करम करने के लिये इनका आश्रय लेते थे, कचरे कूटेसे भरे पूरे थें, इतना इन्होंमें पाप होताथा के लिखने में कलम चलती नहीं और इस गामके श्रावक लोकभी इस बाजू ध्यान नहीं देते थे बाद कितनाक समय गुजरनेके संवत् १९५४ में पाटण दिवासी शेठ लल्लुभाई जैचंदने इधर (मेवाडमें ) आकर मंदिरोंकी दशा देखी. यह पुरुष धर्मानुरागी और उद्योगी है. शासन देवताके प्रभावसे मंदिरोंकी मरम्मत करानेमें कटिबद्ध हुवा, और उसमें कई प्रकारका कष्ट सहनापडा यहांतक की खानपान भी किसी वक्त कठिनतासे मिलता था लेकिन पुरुष धैर्यवान है अपना
SR No.536502
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1906 Book 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchand Dhadda
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1906
Total Pages494
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size13 MB
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