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१९०६] जैन सिद्धांतोना लिस्ट वर्णन.
१०५ ३४ सूत्रना आशरे ७६००० श्लोक थाय छे. ते उपरांत १६००० ना पयन्ना छे अने नियुक्तिओ चौदपूर्वधारी श्रीभद्रस्वामिए करेल. होवाथी सूत्ररूपेज मनाती होवाथी तेना आशरे ७००० श्लोक गणतां कुल ९९००० श्लोक थया एटले लगभग एक लाखनुं सूत्र थयुं लेखाय. एमांना ३४ सूत्रना ७६००० - हजार श्लोक दर्शाव्या, तेमा ढुंढकमतवाळा • पंचकल्प अने महानिशीथने नहि मानतां बाकीना फक्त ३२ सूत्र माने छे. एटले तेओ ते ग्रंथोना आशरे छ हजार प्रमाण श्लोक कहाडी नांखता होवाथी बाकीना सितेरहजार जेटला प्राकृत साहित्यनेज मानी बेठा छे, अने तेटलामां पण घणा स्थळे खरा अर्थने मरडी नाखी अर्थना गोटा वाळे छे. __ आ रीते सौथी पहेला तबकानुं आ एक लाखनुं प्राकृत साहित्य छे. तेना त्रण भाग बताव्या ते ए. सूत्र, पयन्ना अने नियुक्तिओ. सूत्रो मुख्य भागे सुधर्म गणधरना रचेला कहेवाय छे. पयन्ना धणेभागे महावीर स्वामिना बीजा शिष्योए रचेला छे. अने नियुक्तिओ वीर निर्वाणथी २८४ वर्षे थयेला भद्रबाहु स्वामिए रची छे. आ रीते आ साहित्य विक्रमथी पूर्वकाळनुं छे..
बीजा तबकामां बे लाखना भाष्यचूर्णिना ग्रंथ तथा पोणा लाखना कथाग्रंथ छे. बे लाख व्याख्या ग्रंथमां आसरे पचाश हजार भाष्यरूपे अने दोढ लाख चूर्णिरूपे छे. भाष्यना कर्ता श्रीजिनभद्रगणि क्षमाश्रमण गणाय छे. तेओ वीर निर्वाणपछी १००० थी १०५५ ना गाळामां थया छे. केमके वीरथी ९९३ वर्षे सूत्रो लखायां पछी भाष्यो थयां छे, अने १०५५ मां हरिभद्रसूरि थया तेमनी अगाउ भाष्यो थयां छे. ए परथी आपणे एम. धारीशं के विक्रमनी छठी सदीना वचगाळे भाष्य रचायां छे. चूर्णिकार महत्तरवंशी · आचार्य छे. टिप्पनिकामां नंदिचूणि सं. ७३३ मां रचायली जणावी छे एटले चूर्णिओनो समय आठमी सदी छे. अने एज अरसामां वसुदेव हिंडि तथा ऋषिभाषित नामना कथाग्रंथ रचाया मानीए तो विक्रम संवत्नी छठी, सातमी, तथा आठमी सदीनो काळ ते त्रीजो तबक्को छे. अजायबीनी वात छे के विक्रमनी शरुआतनी पांच सदीओमां रचायलो टिप्पनिकामां उपलब्ध थतो नथी.
. संस्कृत साहित्यं. आपणे उपर जोई गया तेम चूर्णिओ विक्रम सं. ७३३ मां रचाइ छे. त्यारपछी बसो वर्ष गयाबाद संवत. ९३३ मां शीळाचार्ये आचारांग तथा सूत्रकृतांगनी 'टीका रचेली छे. आ रीते दशमी सदीथी संस्कृतसाहित्यनी रचना शरू थई त्यारथी ते ठेठ पंदरमी सदीना अर्थ भाग सूधीमां जे जे ग्रंथो रचाया तेमांनो घणो भाग टिप्पनिकामां नोंधाववामां आव्यो छ. छतां सौथी जुनामां जुनी टीकाओ तो श्रीहरिभद्रसूरि के जेओ वीर निर्वाणथी १०५५ वर्ष अने विक्रमथी ५८५ वर्षे थया तेमनी रचेली मणाय छे. आ संस्कृत साहित्य टीकारूपे रहेल