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________________ आमलनेर कोन्फरन्ल. सोझी धरावनारा तथा तेने फतेह इच्छनारा नीचे जणावेला साधु मुनिराजो अने गहस्थोना तारो तथा पत्रोनी टीप वांची संभळावी हती:-मुनिराज श्रीहंसविजयजी, श्रीराजविजयजी, खानदेशना कलेक्टर, खानदेशना सेशन जज, शेट मनसुखभाई भगुभाई, शेठ जमनाभाई भगुभाई, शेठ वीरचंद दीपचंद -सी. आई. ई, शेट जेसिंगभाई हठीसिंग, बाबु राय कुमारसिंगजी, बाबु राज कुमारसिंगजी, रावबहादुर माणेकचंद कपुरचंद, मि. गुलाबचंदजी ढड्डा, शेठ अमरचंद जसराज, शेठ वीरजी वीरपाल, रावसाहेब वसनजी त्रीकमजी, मि. बुधमल केवळचंद, शेठ पुनमचंद करमचंद कोटावाला विगेरे. आ पछी स्वागत कमीटीना प्रमुख शेठ दलीचंद नथुशा सीरसालावाळा तरफथी नीचे प्रमाण, आवकार देनारं भाषण वांची संभळाववामां आव स्वागत कमिटीना प्रमुखनुं भाषण. ___ प्रिय स्वधर्माबंधुओ, सुशील बेहनो, अने सद्गृहस्थो---आजे आ सभामंडपमां पधारेला महाराष्ट्रना जैन कोमना प्रतिनिधीओने अने बीजा सद्गृहस्थोने आवकार देवानुं मान भरेलु काम अहिंना श्री संघ तरफथी मने सोंपवामां आव्यु छे, ते बदल हुं सकलसंघनो आ प्रसंगे मोटो उपकार मानुं छु. आ महान् कार्य माटे मारा करतां बीजा कोई योग्य नररत्नने लाभ आप्यो होत तो ते वधारे आनंददायक थात पण ज्यारे आ मोटु मान मनेज आपवामां आव्युं छे, त्यारे हुं मने मोटो भाग्यशाली मानुं छु. महाशयो ! अमारा आमंत्रणने भान आपी आप साहेबोए आपनो अमूल्य वखत अने द्रव्यनो भोग आपी उष्णऋतुना कष्टो सहन करी अत्रे पधारवानी जे तस्ती लिधी छे ते बदल आपना बहु आभारी छीए. संसारिक मांगलिक तो घेर घेर थायछे. श्रीसंघ जे सर्व गुणोनुं स्थानभूत शासननो आधार-स्तंभ जेमांथीज पंचपरमेष्ठयादि अमूल्य रत्नो उत्पन्न थाय छे; तेवा संघनी पूजा भक्ति करवारूप मंगळ तो क्वचित् भाग्यवंतने घेर थायछे. आयु शास्त्रनुं वचन जेमना हृदयमा रमी रह्यं छे तेओ पोतार्नु आंगणुं श्रीसंघना चरणकमलरजथी क्यारे पवित्र थाय तेनी हमेश तक जोया करे छे. घर आंगणे स्वाभिभाई पधार्या छतां कोने स्नेह न थाय ? जेमनी भक्तिथी तीर्थकरादि पदवी मळी शके, तेवा साधर्मीभाईओना पधारवाथी समकितवंतना आनंदने सीमाज रहेती नथी. बंधुओ ! आ दक्षिणमहाराष्ट्रमा चारसो वर्ष पासेथीज गुर्जर, मरुधर, कच्छ, आदि देशोना आपना साधर्मी भाईओनी वसाहत थएली छे. परंतु तत्पूर्वीना प्राचीनकाळना इतिहासतरफ अवलोकन करशो तो एम जणाय छे के पूर्वकाळमां आ देशमां जैनोनी वधु जाहोजलाली हती. चौदपूर्वधारी श्री भद्रबाहु स्वामी, सिद्धसेन दिवाकर, कालिकाचार्य जेवा महान् आचायाए आ देशमां विहारकरी धर्मनो विजयवंत वावटो फरकाव्यो हतो एनो विश्वासनीय खात्रीलायक पुरावो एज छेके पर्वतो आदिक तत्कालीन जैन भुवनो गुफाओ आदि धार्मिक चिन्हो आज दिन सुधी अवशेष छे. परंतु मध्य कालमां दुःसह कालचक्रना तडाकामांथी अने केटलाक विधर्मीओनी जुलमी राजनीतिथी पूर्वनी उच्चस्थितीनो भंग थई नष्टस्थितिमां समाज आवी गयो हतो. परंतु प्रतापी अने दयाळू ब्रिटिश सरकारना राज्यछत्र नीचे हालना वीशमी सदीना विशाल सुधारणा समयमां महाराष्ट जैन मंडळ जो पछात रहेतो ते पोतानी कर्तव्यताथी विन्मुख थाय एमज मानवू पडे. (श्वेताम्बर जैन कोन्फरन्सनी जे महासभा दर वर्ष भराय छे, अने तेमां जे ठरावो पसार थाय छे, ते ठरावो आ देशना उपयोगी केटलाएक विषयोनो समावेश करी ते ठरावो संघना लाभना अने हितना अर्थे अम
SR No.536501
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1905 Book 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchand Dhadda
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1905
Total Pages452
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size13 MB
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