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. सम्पादकिय टिप्पणी सम्पादकिय टिप्पणी.
जीर्ण पुस्तकोद्धारके खातेमें सबसे पहीले जैसलमेरके भंडारकी टीप तय्यार कराना
_ उचित समझा गथाया. इस टीपके बारेमें मुम्बई कोनजैसलमेरका भंडार.
- फरन्स के पश्चात पंचान जैसलमेरसे खत किताबत की गई परन्तु करीब चार मास तक. जैसलमेर के संघनें किसी चिट्ठीका भी जवाब नहीं दिया. जब मजबूर होकर श्रीयुत दीवान साहब जैसलमेरकी सेवामें प्रार्थना कीगई के जैसलमेर के भंडार में बहुतसी पुरानी जैनधर्मकी अमूल्य पुस्तकें सुननेमें आई हैं के जो बिना उद्धारके नष्ट होती जाती हैं और जिनका उद्धार कराना श्री जैन श्वेताम्बर कोनफरन्सने बहुत ही जरूरी समझा है और जैसलमेर के पंचों को इस विषय में कई चिट्ठीयां दीगई परन्तु वह जवाब तक नहीं देते हैं इस कारण आप से प्रार्थना की जाती है के इस उत्तमोत्तम काम में आप कृपा करके सहायता दें. इस प्रार्थना पत्रके जवाब में दीवान साहब की तरफ से चिठी नम्बरी ५८ तारीख १९ जनुवरी सन १९०४ ई. की इस खुलासे सै आई:
The General Secretary Jain Conference,
Jaipur.
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Sir,
I invited Harakchand Jindani, Seth Sagat Mulji, Sha Meetha Lalji, Mehta Ratan Lalji and other respectable members of the Jain community and put before them for opinion about the important matter proposed by you who told that there is a catalogue of the Bhandar books ready prepared and that they have 110 objection if you want to revise, rewrite and see the books provided that they may not be removed from the temple in which the Bhandar lies.
इस दीवान साहब की चिठीका भावार्थ यह है कि मैं ने हरख चंदजी जिन्दाणी, सेठ सगत मलजी, शा मीठालाल जी, महता रतन लाल जी, और जैन समुदाय के अन्य सद्गृहस्थों को बुलाया और तुमारे (पुस्तकोद्धार के ) भारी मामलेको उनकी राय लेने के लिये पेश किया तो उन्हों ने जवाब दिया के भंडार की फहरिस्त तय्यार है और उनका पुनरावलोकन कराने में, पुस्तकों की नकल लिखवाने में या उनको दिखलाने में (जैसलमेरके संघ को) किसी प्रकार का उजर नहीं होगा परन्तु शर्त यह है कि जिस मंदिर में भंडार इस वक्त मोजूद है उसही जगह बदस्तुर रखा जावै.