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[डिसेंबर हाय! आर्यावर्त! एक दयानंदी महाशयका धोका देना ।
(श्री आत्मा जैन पत्रीका परसे ). थोडाही समय गुजराहै कि आर्यसमाजके उपदेशक पंडित शंभुदत्त महाशय ने " जैनमत समीक्षा" नाम किताब बनाकर जैनसमाजका अतीव दिल दुखाया था परंतु सरकार गवर्मेट बहादरने इस कामके बदले पंडित शंभुदत्तजी साहिबको सजा पात्र ठहराकर पांच सौ रुपयाका जुर्माना किया जो प्रायः प्रसिद्ध है. ऐसा होनेपरभी ना मालूम आर्यसमाजके उपदेशकोंको समाजकी तर्फसे क्या फायदा मिलता है ? या समाजको ऐसे ऐसे उपदेशकोंसे क्या फायदा मिलता है कि जो झूठी झूठी अपनी मति कल्पना की बातें लिखकर पबलिकको धोखा देने और दूसरों के दिल दुखाने के काममें अपना सर्वस्व मानना स्वीकार किया जाता है? आज " तहकीकात तालीम जैन मजहब" नामा एक छोटासा १६ पृष्ठका ट्रेकट हमारी दृष्टि पडा जो “ पंडित चंद्रभानुशर्मा उपदेशक डी० ए० वी. कालेज लाहौर-साकन सुनपत जिला देहली-और पांडत मुरारीलाल शर्माका" बनाया हुआ है, जिसकी भद्दीसी और धोका देनेवाली रचना को देख मनमें यही आता है कि इन बिचारोंका कोनें कैसे नाच नचाने शुरू किये हैं कि जो इस पापी पेटके वास्ते दश बीश रुपैयेकी लालचसे सरासर झूठ बोलके या लिखके दुनियाको धोखेमें डाल आपना परलोक बिगाडनेका उद्यम कर रहे हैं ? परंतु इसमें इन बिचारोंके क्या आधीन है, इनके स्वामी महात्मा श्रीमद्दयानंद सरस्वतीजी की तालीम ही इस प्रकारकी है कि उसके माननेवालोंका दिल जबरन वैसे ही कामोंके करनेमें आनंद मानता है, यदि इस बातका किसीको अनुभव करना हो तो वह उर्दू में छपा " हाय ! हाय !! नियोग" और गुरमुखीमें छपा “ दंभनिवारण'' दोनों पुस्तकोंकी सैर कर लेवे, मतलब कि इस ट्रेकट में पंडित चंद्रभानुशर्मा आदिने सत्यार्थप्रकाशमें लिखी स्वामीजीकी आज्ञाका अनुकरण और पालन जहां तक होसका पूरा पूरा किया मालूम देता है, बेशक गुरुभक्त ऐसे ही होने चाहिये, जैसा कि स्वामीजीनें कहींका थोडासा पाठ लेकर अपना दिल पसंद अर्थ लिखकर आनंद माना है किसीके बदले किसीका नाम लिख मारा है ? * ___इसी प्रकार “ तहकीकात तालीम जैन मजहब" टूकटमें किया गयाहै जिसकी सिरफ दो बातें बतौर नमूनेके यहां लिखकर हम अपने जैनी भाइयोंको खबरदार करना चाहते हैं कि देखना पंडितजीके लेख पर ही विश्वास करके धोखे में न आजाना, हां बेशक, जिस जिस । जगहका नाम देकर पंडितजीने धोका देना चाहाहै उस उस जगहके पाठके साथ पंडितजीके ले वका मुकाबला जरूर करना चाहिये और उसके परमार्थको जरूर बिचारना चाहिये, पंडि ज का लेख स्वतः जबाब देदवेगा कि बेशक झूठ है ॥
* दखा पांडत जगन्नाथदास मुरादाबादवालेकी किताब तथा स्वामा आलाराम सागर संन्यासीकी किताबें ।।