SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 410
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १९०६ ] पाटन में चोथी कॉनफरन्स. ३७७ स्वदेशाभिमानी सज्जन जोजो स्वदेशी चीजें भेजेंगे वह रखो जायेंगी. इस पाटनके कोनफरन्समें सामिल होनेसे धर्म और जातोन्नति के सिवाय बहूत पुरानी पुस्तकोंके दरशणका और स्वदेशी ची - जोंके देखनेका लाभ मिलेगा. मंडपमें जो पांच हजार कुरसियोंका इन्तजाम पाटनके संघने किया है यह उनकी चातुर्यका पूरा सबूत है क्योंकि हिन्दुस्थान के किसी प्रान्त में एसा कोई भी जैनी नही होगाकि जो इस मोकेपर पाटनमें हाजर न होकर प्राचीन पुस्तकोंके दरशण न करना चाहताहो. पान भंडार बहूत प्राचीन हैं जिनमें अपूर्व शास्त्र मोजूद हैं. अबतककी रूढीके मुवाफिक इन भंडारोंके रक्षकोंनें इन भंडारोको किसीको दिखलाना पसंद नहीं किया है परन्तु मुनिश्री कान्ति विजयजी के अथाग परिश्रमसे इस मोकेपर उन पुस्तकोंके दरशण हो सकेंगे. कोनफरन्समें चर्च के लिये पाटनके संघने नीचेके विषयोपर विचार किया है और उनको जगह जगह भेजकर राय तलब की है और दरख्वास्त की है कि इनके सिवाय जो विषय इस वक्त उपयोगी हों या इनमें कमी बेशी करनीहो उसकी इत्तला फोरन दी जावे. विषय नीचे मुत्र चुने गये हैं: -- १ केलवणीनें उत्तेजन आपवा क. धार्मिक ख. व्यवहारिक २ जीर्ण मन्दिरोद्वार ३ जैन प्राचीन पुस्तकोद्धार ४ जैन शालोपयोगी पुस्तकमालानी योजना और रचवा बाबत ५ प्राचीन शिलालेखो वगेरेनी शोध खोल ६ जीवदया क. जीवोनी थती हिंसा तथा तेमना ऊपर गुजरतूं घातकीपणुं बनता प्रयासे अटका ववा बाबत ख. पांजरापोलो जे स्थलोप्पां होय ते सारि स्थितिमां राखवा तथा जे स्थले न होय ते स्थळे नवीन स्थापन करवानी योजना करवा बाबत. ग. त्रस जीवनी अत्यंत विराधना पूर्वक बनतो चाजो उपयोगमां न लेवा बाबत घ. बीजा हरेक प्रयत्ने जीवदयाना कार्योंने उत्तेजन आपका बाबत ७ मुनि महाराजोंनी कोनफरन्स भरवानी खास अगत्यता बाबत. ८ दान, धर्मादा या शुभ वगरह खाताना हिसाबनो वार्षिक रोपोर्ट प्रसिद्धिमां लाववा बाबत. ९ स्वधर्मभाईयोंनें आश्रय क निराश्रितोनें ख. ग़रीबोने उद्योगे लगाडवा वगेरे प्रकारनी मदद आपवा चात्रत ग. कोनफरन्सना खर्चे हिंदुस्थान बाहरनी कला कौशल्यतामां प्रवीण थवामाटे जैन युवानो ने मोकलवा अने ते हुन्नरो जैन कोममां दाखल करवानी योजना करवा बाबत
SR No.536501
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1905 Book 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchand Dhadda
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1905
Total Pages452
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy