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________________ ३७२ जैन कॉनफरन्स हरैल्ड, [नवम्बर અગાધ સમુદ્રના પાર પામી શકાશે. એને માટે વ્યકિમાં ફરજનુ જ્ઞાન વધારવુ‘ આગેવાનોએ નિસ્પૃહ વૃત્તિ રાખવી, માન કરતાં કામ ખાતર કામ કરવું, પોતાની માટી જવાબદારી અને સાધ્ય ધ્યાનમાં રાખવું, મોટાઈ કરવામાં મહાલાભ તેમજ મહાનુકશાન છે એ લક્ષમાં રાખવુ, અને માન કે એવા બીજા કોઈ પણ સ્થુળ બદલાની આશા વગર કાર્ય રેખા અંકિત કરવી, યોજનાએ કરવી, ચેાગ્ય સલાહ લેવી અને વીરના શાસનના વિજય ડકા વગાડવા. ભવિષ્ય સારૂ છે એ નિઃસંદેહછે, પણ તેને ખાદી કાઢવા માટે અસાધારણ પ્રયાસની જરૂર છે. जैन यंग मेन्स एसोसिएशन ऑफ इन्डिया की ओर से सर्व जैनी जाइयों से प्रार्थना. प्यारे भाइयो ! आप अच्छी तरह जानते हैं कि इस समय हमारी समाजको दो वस्तुओं की बड़ी आयइयक्ता है. एक मेल अथवा ऐकवता और द्वारा पारस्परिक सहायता अथवा मैत्रीभावसे कार्य करना. इन दोनों के अभाव से होनेवाले बुरे परिणाम समाचार पत्रोंद्वारा पूर्णतया प्रगट किए जा चुके हैं. इसीका एक बुरा परिणाम यह है कि हमारे कई जाति हितैषी उत्साही भाइयोंका परिश्रम तथा शक्ति व्यर्थ सामाजिक और धार्मिक झगड़ों में नष्ट हो रहे है. यदि आज हम हिल मिलके कार्यकरना प्रारंभ करें तो जो लौकिक झगड़े-जैसे मुकदमे बाजी वगैरह - आज हमारी समाज में दिखाई देते हैं वे एकदम बंद होजावें, और फिर हमारी उन्नति कैसे शीघ्र होती हैं। उसका विचार आपही करलें. इन्हीं आपसी झगडों का एक बुरा परिणाम यहभी है कि अन्यधम स्वतंत्रतापूर्वक बिना रोकके हमारे पवित्र तथा प्राचीन धर्मपर आक्षेप कर रहे हैं. इतनाही नहीं वरन कई असभ्य द्वेषी मनुष्यतो वहांतक बड गए हैं कि, हमारे तीर्थकरोकोभी गाली देते नहीं लजाते. भाइयो! हम विश्वासपूर्वक कहते हैं कि, यदि इन आपलके झगड़ों का शीघ्र अन्त न हुआ, तो ए लोग औरभी स्वतंत्रता से ऐसा करने लगेगे. उपर समाजकी जिस दुर्दशा की ओर संकेत किया गया है उसको सर्वसाधारण नहीं जान सकते. अशिक्षित तो उसपर विश्वासही नहीं करेंगे बरन इस कथनको पढ़कर उसकी ओर परन्तु हमारा कर्तव्य है कि हम अपनी आंखें खोलकर जातिकी वास्तविक दशा देखें,
SR No.536501
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1905 Book 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchand Dhadda
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1905
Total Pages452
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size13 MB
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