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३३६ जैन कोनफरन्स हरैरुड.
[ऑकटोबर है या नहीं सो हन नही कह सकते, लोग कहते है कि ये सुविख्यात देवचन्द्र सूरिके शिष्य
और राजा कुमारपालके शिक्षक हैं, आचार्य वर्य हेमचन्द्र अनेक सुविख्यात कोष और व्याकरण ग्रन्थके निर्मिता है उनमेसें इस जगह निम्न लिखित ग्रन्योका नाम उल्लेख करते हैं |
१ 'अनेकार्य कोष,२ अभिधान चिन्तामणि,३ अलङकार चूडामाग, ४ उणादि सूत्र. वृत्ति,५ छन्दोनुशासनम्, ६ देशीय शब्द संग्रहवृत्ति, ७ धातुपाठ और वृत्ति, ( धातु पारायण
और वृत्ति. ९ धातुमाला, १० निर्वण्टु शेष,११ बलाबल सूत्र वृत्ति,१२ बाल भाषा व्याकरण सूत्र बृत्ति, १३ सिध्ध हैम शद्वानुशासनम् और खोपज्ञ, लघुवृत्ति, १४ शेष संग्रह नाममाला, १५ शेष संग्रह सारोवार, १६: हैम.लिंगानुशालमा.
___ आचार्य वर्य हेपचन्द्रके कोई २ कोष ग्रन्थ इस देशमेंभी प्रचलित हैं किन्तु उनके व्याकरण ग्रन्थका नाम सुनने परभी हमने इस पहले कभी नहिं देखा था; श्री जैन यशोविजय ' संस्कृत पाठशालासे यह ग्रन्थ मुद्रित देखकर हम लोंग प्रकाशक महाशयको अगण्य धन्यवाद देते हैं.
-वृत्ति सहित शद्बानुशासनम ग्रन्थ ( पेनी फरमाका ४८० पृष्ठमें सम्पूर्ण हुआ है, सम्पूर्ण सूत्र अति बृहद् अक्षरमें और परिष्कृत रुपसे मुद्रित हुए हैं. वृतिभी बडे सुंदर अक्षरमें है, कागजभी उत्तम है. इस ग्रन्थकी वृत्तिकी भाषा काशीका वृत्तिकी तरह सरल सुगम और परिस्फुट है. हमको विश्वास है कि वृत्ति सह इस व्याकरणके पढनेसे बहुत सहझमें व्याकरणका बोध हो सकता है.सूत्रकी व्याख्यामें बहुत ज्यादा उदाहरणोका उल्लेख किया गया है. अष्टाध्यायीक तरह इसके समास और तद्वित प्रकरण सुविस्तृत है, कृत्सूत्र और इसकी वृत्ति समहभी अतीव प्राज्जल और शिक्षार्थी गणको हृदयंगम करनेके लिये अत्यन्त अनुकुल है,धातु पाठभी इस ग्रन्थमें अभिनिविष्ट है,मूल्य डाक मासूल व्यतीत २॥) रुपया मात्र है. इस अल्प व्ययमें इस तरह सर्वाग सुंदर व्याकरण ग्रन्थ प्रकाश करके प्रकाशक महोदय, व्याकरणके शिक्षार्थि गणोंका महोपकार किया है. लिंगानुशासनम् स्वतंत्र ग्रन्थ प्रकाशित हुआ है. यह ग्रन्थभी कार्यतः जैसा प्रयोजनीय है वैसाही दृश्यतः सुन्दर है. सोलह पेनी १६० पृष्ठमें पूर्ण इस ग्रन्थका मूल्य चार आना मात्र है. हमको मालूम होता है कि काशीस्थ श्री जैन यशोविजय पाठशाला एक कौडीके लाभकी आशा न करके एतादश अतीव प्रयोजनीय ग्रन्थ प्रचारमें कृत संकल्प हुइ है. श्री भगवान इसके साधु संकल्पके सहायक हो. श्री यशोविजय जैन पाठशालाके इस महत्कार्य द्वारा कर्ताओंका यश चारों तरफ फैलेगा इसमें अणुमात्रभी सन्देह नही है. जो संस्कृत व्याकरण ग्रन्थके पठन पाठनके पक्षपाती हैं वे आचार्य वर्ष' हेमचन्द्रले स्वोपज्ञ लघु वृति भूषित शद्वानुशाप्सनम् शास्त्र पढनेसें निश्चय सुखी होंगे। ऐसा हमको विश्वास है, .
. मिलनेका ठिकाना
- म्यनेजर श्री यशोविजय जैन पाठशाला. .
..... अगरेजी कोठी-बनारस सीटी,
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