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________________ ३३४ ] मैम कोनफरन्स हरेल्ड. [ ऑकटोबर श्री फलोधी तीर्थ पर "राजपूतानाप्रान्तिक सभा” की सूचना. (हमारे प्रतिनिधिकी तरफसे) __ श्री फलोधी तीर्थ पर आसीन वुदि १० की रातको सभाके दूसरे दिनका मलसा हुवा उस वक्त भाषण देते हुवे सभासदोके समक्ष इस बात पर जियादा कथन किया गया कि आप सब साहबोंको कोनफरन्सके जो जो कर्तव्य हैं वह तो यथाशक्ती मालूम किये गये उससे आपको अवश्य खयाल हुवा होगा कि अपनी महा सभाका काम सर्वदेशी है किसी खास प्रान्त या खास नातिके साथ सम्बन्ध नहीं रखता है और अपनी समाज प्रायः करके भारतवर्ष में सब जगह फैली हुई है और एक प्रान्तके जैनियोंके रीति रिवाज दुसरी प्रान्तवालोंसे बहत कम मिलते हैं. ऐसे खास खास मामलात पर महा सभामें गोर होना असंभव है. प्रान्तिक रीति रिवाजोंके सुधारेके वास्ते हर प्रान्तिक कोनफरन्सका होना बहुतही जुरूरी है. दक्षिणकी प्रान्तिक सभाने आमलनेरमें इकट्ठा होकर उस प्रान्तके कुरीति रिवाजका प्रबन्ध किया. उत्तर विभाग गुजरात प्रान्तिक सभा पेथापुरमें इकट्ठी हुई उस समय करीब दो हमार श्रावक श्राविकाने मिलकर जिन जिन कुरीति रिवाजकी चर्चा उस सभामें उठाई गई थी मसलन वृद्ध और बाल लम, कन्या विक्रय वगरह उन सबका प्रबन्ध किया. मध्य प्रदेशमेंभी प्रान्तिक समाकी चर्चा गर्मागर्म चल रही है और आशा की जाती है कि थोडेही दिनोंमें उस प्रान्तमभी सभा होकर वहांको प्रवन्ध ठीक तौरपर किया जाये इसही तरह राजपूतानामेंभी एक प्रान्तिक सभा की नावे निसमें छोटे मोटे सब गांवों के प्रतिनिधि बुलाये जावें इन प्रतिनिधियोंके इकट्ठे होनेसे दो तरहका लाभ होगा. अवल तो उनके समक्ष जिन निन बातोंका प्रवन्ध किया जावेगा वह प्रवन्ध एकदम कुल राजपूतानामें हो जावेगा और दूसरे उन प्रतिनिधियोंको कोनफरन्सके कामसे वाकफियत हो जावेगी. इस प्रान्तिक सभाके होनेसे जो जो कुरीति रिवाज खास अपने राजपू. तानामें प्रचलित हैं उनका आसानीके साथ प्रबन्ध हो सकता है और इस तरह प्रान्तिक सभावोंके होनेसे महा सभाको उसके काममें बडी मदद मिलती है. प्रान्तिक समावोंमें जियादा खर्चकी आवश्यक्ता नहीं है सिर्फ काम करनेवाले मनुष्योंकी नियादा जुरूरत है. विचार करनेसे या तो जोधपुर या अनमेर इस सभाके वास्ते ठीक स्थान मालूम देते हैं. प्रान्तिक सभाके होनेसे जो दिक्कतें इस वक्त महा सभाके काममें राजपूताना प्रान्समें दर पेश आती हैं वह सब मिट जावेगी. इस वक्त कोन्फरन्सके कामकी पूरी वाकफियतं हर गांवके समुदायको नहीं है परन्तु प्रान्तिक सभा होनेसे मालूम हो सकती है. __इस विवेचनकी ताईद अजमेर निवासी राय बहादुर सेठ सोभागमलजी ढहाके पुत्र कल्या. णमलजीने की जिसपर सभाका मत लेते हुवे यह बात करार पाई कि अभी राजपूतानाके छोटे गांवों में कोनफरन्सकी कार्यवाही मालूम नहीं हुई है. इस लिये जब तक अव्वल उन लोगोंको
SR No.536501
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1905 Book 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchand Dhadda
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1905
Total Pages452
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size13 MB
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