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________________ श्री जैन श्वेताम्बर सुकृत भंडार.. श्री जैन श्वेताम्बर.सुकृत भंडार, ... (लेखक-सोभागमल हरकावत्-अजमेर) आहा, क्याही आनन्दका विषय है कि जिससे पुण्यानुबंधी पुण्यका संचय और कर्मोकी निर्जरता होती है, पाठक वृंद ! इसका खुलासा वादी प्रतिवादी द्वारा स्पष्ट रूपसे कर देता हूं, जिसको, मैं आशा करता है कि आप ध्यानपूर्वक पठन वा श्रवण करेंगे, बादी-वो ऐसा कोनसा शुभ कार्य है कि जिससे पुण्यानुबंधी पुण्यका संचय और कर्मी की निर्जरता होती है, प्रसिदि-श्री जैन श्वेताम्बर सुकृत भंडारमें श्वेताम्बर जैनी चाहे पुरुष. हो वा स्त्री, चाहे बालक हो वा बालिका प्रत्येक प्राणीके पीछे केवल ।) चार आना मात्र वार्षिक देनेसे. वादी-श्री जैन श्वेताम्बर सुकृत भंडार किसको कहते हैं, प्रतिवादि-श्री जीर्ग जिनमन्दिराद्वार, श्री जीर्ण जैनपुस्तकोद्धार, जीव दया, निराश्रित जैन ... पालन और विद्योन्नत्ति. इन पांचों शुभ कार्यों में व्यय करनेके हेतु जो द्रव्य संचित - होता है उसको श्री जैन श्वेताम्बर सुकृत भंडार कहते हैं. . . . वादी-इन पांचों शुभ कार्योका कुछ संक्षिप्त वर्णन करके समझाइथे. . प्रतिवादि-प्रथम-श्री जीर्ण जिनमदिरोदारका लक्षित. वर्णन करता हूं, कि जिनराजके मन्दिर जो जीर्ण अर्थात् पुराने पंड गये हों उनकी मरम्मत करवानी अर्थात् सुधरवाने, और जिन भगवानकी प्रतिमाकी पूजन यदि प्रतिदिन नहीं होती हो तो नित्यप्रति पूजन होनेका प्रबंध करना, और यदि पूजाकी सामग्री जैसे- केसर, चन्दन, पुष्प, धूप, दीपक, आदि न हों तो अर्पण करनी, यदि रात्रीमें दीपक न होता हो तो दीपक करवाना, और यदि कूडा कन्टक आदिले उक्त मन्दिर संवटित हो तो स्वच्छ रखवाना, इत्यादिक जिस २ मन्दिर में जिस २ बस्तुकी आवश्यक्ता हो उसको परिपूर्ण करनी इसीहीको : श्री जीर्ण जिनमन्दिरोद्धार कहते हैं, जैन सिद्धान्तोमें ऐसा लिखा है कि " नवीन मन्दिर बनवानेकी अपेक्षा जीर्ण मन्दिरोद्वारमें अष्टगुणा अधिक फल प्राप्त · होता है और बारचे देवलोककी स्थिती बंधती है," जैसे कुमारपाल और सम्प्रती आदि राजाओंने सैंकडों जीर्ण जिनमन्दिरोदार कराये हैं और पुण्यानुबंधी पुण्यका बन्धन किया है सो सिद्धान्तोंमें सम्पूर्ण रूपसे वर्णीत् है जैसे-'मानसित्' आदि शास्त्रों में देख लो. द्वितीय श्री जीर्ग जैनपुस्तकोद्वार जैन सिद्धान्त अर्थात् शास्त्र नो जीर्ण अर्थात् पुराने ... पड गये हों उनको शुद्धतासे नवीन लिखवाना और यत्न पूर्वक रक्षा करनी चाहिये क्यों कि श्री अरिहंत भगवानके अभावमें केवल शास्त्रही ज्ञानके भंडार हैं, उन्होंसे हम ज्ञानकी
SR No.536501
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1905 Book 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchand Dhadda
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1905
Total Pages452
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size13 MB
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