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श्री जैन श्रेयस्कर मंडलकी रोोर्ट. बातका प्रथम इन्तजाम किया जावे और वहां प्रत्येक स्थानमें कोनफरन्सके हितैषी प्रेम्वर मोजूद हैं वह अपने शिर पर यह बात लें तो रकम उसही वक्त वसूल हो जाये और किसी वेंक वगरहमें फिलहाल जमा कराही जावे या किसी और मातबरके सिपुर्द की जाये. जब रको पूरी इकठी हो जाये तो एक जैन बेंक खोला जावे कि जिसका कुल इन्तजाम जैनियोंके ही हायमें रहै. बेंकके खुलनेते मन्दिरों वगरहकी कुल रकमें वहां ही जमा होने लग जावेंगी. सब कामकी जैनियों में सुगमता और सुलभता है लिर्फ कटिबद्ध होकर उद्यम करने वाले भाविकोंकी ही दुर्लभता है सो जब कि बडे बडे शेठिया इस बातको पसंद करते हैं तो एक पाल सांसारिक व्यापारके बदले धर्मका ही व्यापार करलें तो उनके दोनोंही लोक सुधर सको हैं.
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श्री जैन श्रेयस्कर मंडलकी
श्री जैन श्रेयस्कर मंडलकी सम्बत १९६०-६१ की रीपोर्टके देखनेसे मालूम होता है कि इस मंडलका खास उद्योग जैन पाठशालाबों, पुस्तकालयों वगरहकी देखरेख रखकर उनमें सुधारा बधारा करके विद्योन्नत्ति करनेका है. इसके प्रमुख कलकत्ता निवासी रायबहादुर बदरीदासजी, उपप्रमुख मुम्बई निवाली सेठ वीरचंदजी दीपचंदजी सी. आई. इ. आदि तीन और मंत्रि शा० वैणीचंदजी सूरचंदजी आदि तीन हैं. सलाहकार मेंमबरों के तरीक पर कई स्थलोंके विद्वान सज्जन शामिल हैं. इस मंडलके निर्वाहके वास्ते कई सद्गृहस्थाने उदार दिलके साथ चंदा दिया है. इस मंडल की तरफसे जूनागढवाला शाह दुल्लभदास कालीदासने दोरा करके कई जैन पाठशालाओंकी परीक्षा ली है, उसका नतीजा यह निकला कि काठियावाडकी संभाली हुइ पाठशालाओं से ७ पाठशालाओंका परिणाम अच्छा है, ८ पाठशालायें सामान्य रीतसे काम चलाती हैं और १२ पाठशालाशेंका कार उतरती स्थिती है. गुजरात प्रान्तकी संभाली हुई. पाठशालावोसे पांचका परिणाप अच्छा है, आठका सामान्य और पांचका उतरला हुआ है. राजपूतानाकी तीन पाठशाला और खानदेशकी एक पाठशालाकी संभाल नहीं की गई. इस परीक्षाके परिणामके देखनेसे विदित होता है कि पाठशालावोंका काम जैसा कि होना चाहिये वैसा नहीं है बल्के निगरानीकी जियादा जुरूरत मालूम देती है और राजपूताना, मालपा, पंजाब वगरह प्रान्तोंकी पाठशालावोंकी संभालकी भी अत्यावश्यक्ता है क्यों कि यह मंडल कुल हिंदुस्थानकी जैन समाजके श्रेयके वास्ते कायम हुवा है. शा० वैणीचंदभाईका प्रयास बहू ही स्तुति