SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 285
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १९०६ ] विद्यन्नति पर एक विद्वान महात्माका विचार. २६३ इनके सिवाय और भी कई तरहके फायदे हैं कि जिनका अनुभव इस तरहकी सभाव होने पर हो सकता है. दक्षिण प्रान्तके भाइयोंनें प्रातिक सभा करके अपने प्रान्तमैं उन्नतिका बीज बोया है इसही तरह पर उत्तर विभाग गुजरात प्रान्तके भाइयोंनें गुजरात प्रान्तिक सभा करके उस रुतवेको हांसिल किया है कि जो उनको इस प्रान्तिक सभाको गैर मोजूदगी में मुशकिलसे प्राप्त हो सकता था क्यों कि इस प्रान्तिक सभा होनेके पश्चातही पैथापुरके भाइयोंनें संघ इकट्ठा करके कोनफरन्सकी सत्ताके साथ तीन वरोंको इस लिये जात बाहिर कर दिया कि उनमेंसे दो घरवालों नें तो कोनफरन्सके ठहराव के खिलाफ आटा साटाका गण किया था और तीसरे वरवालेनें उनको इस कामकी तरफ मदद दी थी. इस तरह पर ऐसी २ प्रान्तिक कोनफरन्सोंके होते रहने से जो २ स्थानीक कुरीति रिवाज जड पकडे हुवे हैं और जिनके जारी रहनेसे हमारी समुदायको नुकसान पहूंचतां है उनका बहूत जल्द प्रबंध हो सकता है. हम आशा करते हैं कि दक्षिण और गुजरात प्रान्तके भाइयोंकी हिम्मतका अनुकरण करते हुवे हमारे काठियावाड, कच्छ, राजपूताना, मालवा, सी. पी., सी. आई. पंजाब, पूरव, बंगाल, मदरालके भाइ भी अपने २ प्रान्तमें प्रान्तिक सभावें करके जनरल कोनफरन्स की विचारी हुई बातों को बहूत जल्द अमल में लायेंगे. विद्योन्नति पर एक विद्वान महात्माका विचार. ( खास रैडके वास्ते. ) आत्माके स्वच्छ स्वरूपको यथोचित प्रगट करनेके लिये विद्या सुनारकी अभीवत है. विद्वान मनुष्य ही अच्छे बुरेका खयाल करके छान बीन के पश्चात उत्तम धर्मको अंगीकार करता है. इस (जैन) धर्मकी जो कुछ बेकदरी होरही हैं बेइल्मीकी ही वजह है अगर दीर्घ दृष्टी से सोचा जाता है तो पूर्वाचार्यैकी जहां सैंकडों और हजारों की गिनती थी वहां जमाने हाल में एक भी नहीं मालूम देता है, जिसकी बड़ी भारी वजह यह ही है कि जिस कदर इल्मियत चाहिये नहीं है इस लिये जहांतक होसके सब काम पीछे छोड़कर सिर्फ इल्मकी तरकीब तरफ ही तवज्जह जियादा होनी चाहिये. वो आप खुद जानते हो तो भी हम अपनी राय जाहिर करे विना नहीं रह सकते हैं. जैसे " हस्ति पदे सर्व पदानिमनाः " इस
SR No.536501
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1905 Book 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchand Dhadda
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1905
Total Pages452
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy