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________________ २६२ जैन को नफरन्स हरेes. [ ऑगष्ट मालूम हो सकता है ? इसी तरहपर राजपूताना, पंजाब वगरहके मारवाड मेवाडादि स्थलोंके ग्रामणि जैनी इस कोनफरन्सके नाम तकसे वाकिफ नहीं हैं. शहरोंके रहने वाले सज्जन वाकिक हुवे हैं. ग्रामीण जैनियोंका कोनफरन्सके काम काजसे नावाकिफ रहना आश्चर्य पैदा करने वाली बात नहीं हैं क्यों कि अब तक अपनी खुवाहिश के मुवाफिक महासभाकी कार्यवाही सर्व साधारण तौरपर मालूम हो सके इसका पूरा यत्न नहीं किया गया है. इसका यत्न करने से कई वर्षो में सब जगह इसका प्रचार हो सकता है. द्रटान्तवत रेलगाडीको हिन्दुस्थानमें चलते हुवे अरता करीब पचास सालका व्यतीत हो गया है और इन दिनोंमें इस गाडीका सिलसिला चारों तरफ जगह जगह जारी होगया है तो भी बहूतसे मनुष्य एसे देखनेमें आये हैं कि जिन्होंनें बैठना तो दर किनार परन्तु इस गाडीको अबतक आंखों से नहीं देखा है. एसे मनुष्यूँनें जब कभी उनको इस गाडीका देखनेका मोका मिला है तो उसको काली महांकाली समझ कर नमस्कार किया है. हमारी कोनफरन्सको जारी हुवे तो अभी सिर्फ तीन सालका भी पूरा अरसा नहीं हूवा है फिर उसका हाल इतना जल्दी . सबको मालूम होना कैसे सम्भव हो सकता है ? प्रान्तिक सभावों के होनेसे, महासभाकी पुष्टीके वास्ते नीचे लिखे हुवे फायदे मिल सकते है: १. कुल प्रान्त प्रान्तिक सभावोंके होनेसे कुल प्रान्तोंके मनुष्योंको महासभाकी कार्यवाहीका बोहो सकता है; हर प्रान्त में प्रान्तिक सभा होनेले कमखर्च के साथ महासभाकी कार्यवाहीका जल्द बोध हो सकता है: ३. प्रान्ति सभा होनेसे उस प्रान्तके जैनियोंकी लागणी महासभाकी तरफ बढ़ती है; ४. महासभा के विचारे हुवे काम काज हर प्रान्तमें ऐसी सभावों के होनेसे अछी तरह अमलमें आ सकते है; प्रातिक सभाव होनेसे उस प्रान्तके खास खास कुरीतिरिवाजका प्रबन्ध हो सकता है; ६. प्रथक २ प्रान्तके भाइयोंमें परस्पर सम्प और भ्रातृभावकी वृद्धि हो सकती है; ७. पुरुषार्थको उत्तेजन मिलता है और आयंदा हिम्मत बढती है.
SR No.536501
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1905 Book 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchand Dhadda
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1905
Total Pages452
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size13 MB
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