SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 230
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन कोन्फरन्स हरल्ड. [ जून २१४ रन्सना रिपोर्टोने सर्वोपयोगी बनाया सारु भाषा गुजराती राखीने बाळबोध अक्षरथी छाषवानो नियम राख्यो के जेथी हिंदी वांचनाराओने अक्षर बाळबोध होवाथी ठीक पडे तेमज गुजराती बांचनाराओ aणारा बाळबोध अक्षर वांची शक्ता होवाथी तेओने पण कांई अगवड पडे नहीं. आ हेतुथी प्रांतीक कॉन्फरन्सोमा रिपोर्टने बहु अगत्यना समजीने गुजराती भाषा अने बाळबोध अक्षर छापीने प्रसिद्ध कर्या. बली आ मासीकमां केटलाएक अगत्यमा विषयो उपर अंग्रेजी भाषामां पण लेखो आववानी जरूर छे.. गुजराती हिंदी अने इंग्रेजी आ त्रणे जुदी जुदी भाषा वांचनाराओनी पुर्ण सवड क्यारे सचवाय के अमे सर्वेने माटे जुदां जुदां मासीको प्रगट करीए पण हालना संजोगोमां तेम कखं बनी शके तेम नथी तेमज प्रत्येक व्यक्तीनी सवड सचवावी अशक्य होवाथी अमारा कदरदान ग्राहकोनी अमे क्षमा मागी छ अने आशा राखीए छीए के गुजराती या हिंदी गमे ते भाषामां छापवामां आवेला लेखोनो तेओ तेमनाथी बने तेल लाभ लेवा चुकशे नहीं अने भाषानी भिन्नताने लीधे पडती अगवडता पोताथी बनी शके तेटले अंशे दुर कर. सम्पादकिय टिप्पणी. यद्यपि जैसलमेरका भंडार खुलानेमें और उसकी टीप करानेमें अथाग श्रम उठाना पड़ा है और जो काम तीन चार मासमें कमखर्च के साथ हो सकता जैसलमेर भंडार था उसमें बारह मास और उसही हिसाब से जियादा खर्च लगा है तोभी श्रीदेवगुरू प्रसादसे जिस टीपके कामको शुरू किया था वह अब सम्पूर्ण होगया है . किले के भंडारकी टीपमें पुस्तकों की संख्या लगभग २१७५ आई हैं. जब टीप शुरू की गई थी उसवक्त एसा सुननेमें आयाथा कि इस भंडार में पुस्तकोंकी संख्या लगभग ३५०० के हैं परन्तु टीपका काम सम्पूर्ण होनेपर पुस्तकोंका नम्बर सिर्फ ऊपर लिखे प्रमाण आया है. इस टीपके काममें बिलम्ब होनेके कारणोंका वृत्तांत हम पिछले अंकमें बतला चुके है. ऐक समय एसा था कि जिसमें इस भंडारका खुलना और उनकी टीपका होना बिलकुल असंभव था. परन्तु हमारे जैसलमेर निवासी भाईयोंनें कृपा करके कोनफरन्सका हेतू पार उतारने की इच्छा से इस भंडारको खोलकर टीप करादी है. अगरचे इस टीपके काम में बहुतसे विघ्न डाले गये है तभी शुरू किया हुवा काम पार पडजानेसे खुशीकाही मोका है. इस टीपके कामकी मददपर बहुतसे सज्जन तो अवलसे अखीर तक कमर बांधे हुवे मोजूद थे परन्तु पांचों अंगुली एकसी नहीं हो सकतीं हैं और सबका मन, विचार, बुद्धि और कृपालुता एकही नहीं हो सकती है इस कारण इस टीपके काममें हरवक्त बहुत विलंब हुवा. अब इस टीपको देखकर यह निश्चय करना है कि इनमें से कोन कोनसे ग्रंथ उपयोगी है और कोनकोन ग्रंथोंका शीघ्र उद्धार होना जरूरी है, इसका निश्चय होनेपर पुस्तकोद्धारका काम शीघ्रही प्रारंभ किया जावेगा. जैसलमेर में सिर्फ एक किलेकाहीं भंडार नहीं है बलके दसेक भंडार पुराने जमानेके शहरमें
SR No.536501
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1905 Book 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchand Dhadda
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1905
Total Pages452
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy