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________________ पेयापुर कोकरन्स. भाषानां पुस्तको रखाय छे अने त्यां दरेकने मफत उपयोग करवा देवामां आवे छे तेवीज रीते जमनीमां आवेला बोन शेहेरमा पुस्तकशाळा छे जे पहेला नंबरनी गणाय छे अने तेमां विशेष खुशी थवानुं ए छे के आपणा धर्मनां पण पुस्तको छे अने डा. बुलर, डा. कीलहोर्न के जेणे संस्कृत भाषामा व्याकरण बनावेलुं छे तेओ हिंदुस्थानमा जुदे जुदे स्थळे फरी घणो खर्च फरी मली आव्यां तेटलां पुस्तको लई गया छे तथा संग्रह करेलो छे. हालमां ब्रिटिश म्युझीअमने अनुसरीने नामदार लार्ड कर्झनना प्रयासथी “ इम्परिअिल इनस्टियुट " नामनी एक लायब्ररी कलकतामां उघाडवानो उद्यम थाय छे अने तेमां दरेक धर्मना पुस्तको राखवानी गोठवणो करवामां आवनार छे ज्यारे एक परदेशी राज्यकर्ताने आवी लायब्ररीनी जरूर जणाय छे तो आपणे आ कुंभकरणनी उधमांथी क्यारे उठीशु ने तेवी योजनाओ क्यारे करीशुं? मोटा वेपारीओ तथा मीलमालेको वीगेरे पोतपोताना चोपडा उधाई आदी न लागे तेम अने जरूर प्रसंग उपयोगमां आवे ते माटे दरेक सालवार राखे छे तो आ दाखलाथी पण सिद्ध थाय छे के आपणे आपणा उद्धार अर्थे पण आपणां प्राचीन तथा अर्वाचीन पुस्तकोनो समुदाय करी एक जनरल लायनरी स्थापन करवी जोईए के जेथी आपणने, आपणा मुनीराजो वीगेरेने पस्तको भेळवतां जे श्रम वेठवो पडे छे ते दुर थाय, आपणा तीर्थकर भगवानना तत्वोथी आपणो मोटो भाग अजाण्यो छे ए दिलगीर थवा जेवू छे पण खुशी थवा जेवू ए छे के अमेरिकामा केटलेक स्थळे मर्हम मि. विरचंद राघवजी गांधी तथा मि. फतेचंद कपुरचंद लालनना प्रयासथी जैन धर्मना तत्वो दाखल थवा पाम्यां छे, अने आपणो धर्म महावीर स्वाभिना वखतनो नथी अने अन्य दर्शनाओ माने छे तेम बौद्ध धर्ममाथी नवे निकळेलो नथी परंतु प्रथम तिर्थकर श्री रीखभदेवना वखतथीज चालतो आयेलो छे तेवू तेभणे अनार्य भुमाओमी सिद्ध करी आप्युं छे. आपणी आर्य भुमीमां पण आपणां धर्मना तत्वो अन्य धर्मीओ पण समजवा लाग्या छे एखुशी थवा जेवू छे. शेठ हाथीभाई मुळचंदनु भाषण. आपणा पुर्वजोए पुस्तकोनो जे वारसो आप्यो छे तेने उधाई खावा देवी न जोई ए. ग्रंथो उपर आपणो आधार छे. गुजरात वाक्युलर सोसाइटीना धोरण उपर जैन पुस्तकालय स्थापq जोईर. जेसलमीरना भंडार माटे थती हीलचाल सारु आपणे आपणां मानवंता प्रमुख साहेबनो उपकार मानको जोईए अने तेवो आपणे यत्न करवो जोईए. बाद उपलो ठराव सर्वानुमते पसार करवामां आव्यो हतो. पेथापुरना ठाकोर साहेबे दर्शावेलो आनंद. आ वखते पेथापुरना सगीर ठाकोर श्री फतेहसींहजीए पोतानी मातुश्री तरफथी जणाव्यु के आर सघळाए पधारी मारु गाम शोभावयुं छे तेथी मारी मातुश्रीने तथा मने परम आनंद थयो छे. आ काम तरफ हुँ तथा मारी मातुश्री संपूर्ण दिलसोजी धरावीए छीए. आना जवाबमां प्रमुख मी. ढढाए कुमारश्रीने धन्यवाद आपी तेमनी मातुश्रीनो उपकार मानतां जणाव्यु के तमारी मातुश्रीने तेमनी अनारी तरफनी आवी लागणी माटे संघ तरफथी हुँ उपकार मानुं छु ते जणावशो.
SR No.536501
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1905 Book 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchand Dhadda
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1905
Total Pages452
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size13 MB
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