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[जून
जैन कोनफरन्स हरैल्ड. हजु करे छे तेथी कोइ पण माणस अजाण्यु नथी. आ दुष्ट रीवाजे आपणा लोकोना शरीरनी छेकज पायमाली करी नाखी छे. कोईना पण मुख उपर नुर रहेवा पाम्युं नथी. चहेरा तो तद्दन फिका पडी गया छे. उत्साह तो बिलकुल जणातो नथी. आजे माथु दुखे तो काले पग दुखे, परम दहाडे पेटमां दुखे तो वळी चोथे दिवसे तो कांइ बीजुंज थाय. पंदर सोळ वर्षनी वयना उछरता बाळकोने चश्मा चढाववा पडे छे. ए रीते आ रीवाजे आपणा आयुष्य उपर पण छलंग मारी छे. आ दुष्ट रीवाजे आपणी शक्तीनुं हरण करी बस कर्यु नथी पण आपणी संततीने वधारे ने वधारे अशक्त तथा ओछा आयुष्यवाळी दीन प्रतिदीन करी नाख्ने छे. आ दुष्ट रीवाज आपणा उपर ज्यारथी मुसलमान लोकोनी सत्ता शरू थई त्यारथी आपणामां दाखल थवा पाम्यो होय एम जणाय छे. आगळना बादशाही अमलमां हिंदुओनी कुंवारी कन्याओने परधर्मिओ जोरजुलमथी लइ जता अटकाववाना हेतुथी आ दुष्ट रीवाज दाखल थवा पामेलो छे. हाल कांई तेवो समय रह्यो नी, तेथी आपणा लोकोए ए दुष्ट रविाजने वळगी रहेQ जोईतुं नथी; कारण के हालनी सार्वभौम ब्रीटीश सरकारना अमल नीचे कोई वातना जोर जुलमनो संभव नथी, तेथी ए नेकी राजकर्तानो आ मांगलीक प्रसंग उपकार मानवो जोईए. जय जय, श्री एडवर्डनो जय जय. नानपणमां लग्न करवाथी स्त्रीना उपर मरदनो जे दाब रहेवो अवश्यनो छे ते रही शकतो नथी ने मरद तरफ जे माननी दृष्टीए जोवू जोइए ते बनी शकतुं नथी. आ जंगली रीवाजे ब्रह्मचर्य अवस्थारूपी प्रथम आश्रम तेनो तो समूळगोज नाश करी दीधो. तेनां कडवां फळ आपणने भोगववां पडे छे अने भविष्यनी प्रजाने भोगववां पडशे ए खुल्लुंज छे. बंधुओ ! ए दुष्ट रीवाजने नाबुद करवा तत्पर थई श्री सयाजीराव महाराजा साहेबने साह्यभूत थाओ, एज मारी प्रार्थना छे. विद्या संपादन करवामां आ दुष्ट रीवाज मोटी अडचणरूप छे. विद्याथी केटला लाभ थाय छे ने विद्या खरा सुख, साधन शी रीते थई पडे छे ते यथार्थ रीते तो फक्त विरलाओज जाणी शके छे. विद्याथी जे एक अलौकीक आनंद थाय छे ते महोडे कही शकाय एवो नथी. हवे ब्रह्मचर्य विषे बे बोल बोलशि. बधा जीवोना प्राण रक्षण- मुख्य साधन ब्रह्मचर्य छे. ते शरीरना आरोग्यनुं मुख्य कारण छे. ब्रह्मचर्य वडे शरीरनुं पोषण थाय छे, बळ बुद्धी ने तेज वधे छे, ने आयुष्यने वधारे छे, वृद्धावस्थाने रोके छे, रोगनो नाश करे छे, मृत्युथी बचावे छे, अने मोक्षमार्गनी बारी देखाडे छे, अने मनने सदा प्रफुल्लीत राखे छे. आ सर्वे बाळ वयमां ब्रह्मचर्य नष्ट थवाथी नाश पामे छे अने अनेक प्रकारनां कष्ट उभां थाय छे, जेथी बाळलग्ननो रीवाज बंध करी पोतानां संतानोनां इहलौकिक अने परलौकिक सुखनी वृद्धी करवाने ब्रह्मचर्य पळावq ए माबापोनी मुख्य फरज छे. ज्यारे आपणा आर्यावर्तमां ब्रह्मचर्य धर्म प्रबळ हतो अने बाळ लगन थतां नहीं हतां त्यारे आपणो देश सर्व प्रकारनी उन्नतीना शीखर उपर हतो; परंतु ज्यारथी ब्रह्मचर्य नाश पाम्युं त्यारथी आपणो देश नष्ट भ्रष्ट थई गयो छे. बळ, बुद्धी, धन, महाशयता अने पुण्यनी वृद्धी ब्रह्मचर्यथी थाय छे; तेनो महीमा अगाध छे. जेनुं ब्रह्मचर्यपणुं भ्रष्ट थाय छे तेनी घणी दुर्दशा थाय छे. ज्यांसुधी आपणा देशमां ब्रह्मचर्यनी स्थापना थशे नहीं त्यांसुधी देशनी उन्नती थवी दुर्लभ छे. ब्रह्मचर्यथी सर्व सत्ताधीश थवाय छे. पुर्वकाळे ऋषी, महर्षी अने राजा महाराजा ब्रह्मचर्यनेज परम धर्म मानता हता अने पूर्ण ब्रह्मचर्य पाळीने शत्रुनो पराभव करता हता. युरोपियन लोको लांबी जिंदगी भोगवे छे तेनुं कारण तेमनामां मोटी उमरे लग्न थाय छे एज छे. सद्गृहस्थो, आगलना पुरुषो ब्रह्मचर्यथीज बुद्धीवान अने बलवान हता. जे गृहस्थ नानाप्रकारना सुखी आशा राखतो होय तेणे ब्रह्मचर्य- सेवन करवू अने पोतानी संततीने तेनु सेवन कराव. बाळ लग्नथी विधवाओ!