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________________ जैन कोनफरम्स रैल्ड. हर गांमके जैन मर्द और औरत इस बातपर कमर बान्धे, जिस तरहपर एक गांममें एक जातकी खास पंचायत होती है और उसके कायदोंकी पाबंदी सबको करनी पड़ती है और जो मनुष्य अपनी उलट बुद्धिसे इसके विरुद्ध आचरण करताहै तो उसके साथ पंचायती व्यवहार बन्ध करदिया जाताहै वैसेही ग्रामीन पंचायतकी जगह प्रान्तिक कोनफरन्सके कायदे समझे जावें. गांवके पुरुष स्त्रीकी जगह प्रान्तके मर्द औरत समझे जावें और जिस तरहपर गांवकी पंचायतके विरुद्ध चलनेसे वह मनुष्य पंचायतसे खारिज रहताहै वैसेही प्रान्तकी पंचायती सभाके कायदोंके खिलाफ जो कोइ आचरण करे उसको प्रान्तकी पंचायतमें शामिल न समझाजावे और उस प्रान्तमें उसके साथ कोइ व्यवहार नहीं रखाजावे. अगर यह प्रबन्ध कुल हिन्दुस्थानके पृथक् २ प्रान्तमें होजावे तो आशा की जाती है कि अपनी महासभाकी धारी हुई कार्यवाही बहुत जल्द फलीभूत होसकती है. में आशा करताहूं कि इस मामले पर प्रथम गोर करके आप साहब एक नकी ठहराव करके सिर्फ कागजी काम नहीं बलके एक वा कई प्रबन्ध ऐसा करेंगे कि जिससे हमारा सुधारा बहुत जल्द होसके. इस मामलेमें हरगिज दो राय नहीं हो सकती है कि सामाजिक और धार्मिक कॉन्फरन्सोंके इकठे होने की बहुतही जुरूरतहै परंतु कॉनफरन्समें सिर्फ छटादार भाषणोंके होनेसे या सभामंडपमें बैठकर परस्पर मुलाकत करनेसे ही कुच्छ सिद्धि नहीं हो सकती है. प्रथमकी दोचार कॉनफरन्सोंमें तो इतनी बातका पैदा हो जाना ही गनीमत समझा जाता है क्योंकि जो मसाला खंड बिखंड पडा हुवा होता है उसको छांटछूट कर किस्म वार करनेमें महनत पडती है परंतु एकदफे यह महमत उठा कर जुदै २ मसालेका ढेर अल्हदा २ कर दिया जाये और फिर भी उस ढेरको उसही हालतमें रहने दिया जाये तो उससे कुछ फायदा नहीं पहुंच सकताहै. अपनी महासभाके तीन जलसोंमें यह महनत कर लीगई उसका नतीजा यह हुवा कि दक्षिणमें तथा उत्तर विभाग गुजरातमें प्रांतिक सभाये हुइ परंतु इन प्रांतिक सभाओंमें भी सिर्फ कागजपर प्रस्ताव लिखे जावें और तीन दिनकी मोज शोकके बाद तालिया बजाकर अपने २ घरोंको सिधारें तो में तो इस कार्यवाही को अब अपनी तरक्री पाई हुइ हालतमें फतेहमंद नही समझ सकता हूं. मेरी राय यह है और में उमेद करता हूं आप इस रायको पसंद करंगे कि इस प्रांतिक सभामें आप साहब खास २ जरूरी बातों पर कि जिनके सुधारेकी आवश्यक्ता है ध्यान देकर उन पर चरचा करके खास एक ठहराव पर आकर उस ठहरावकी पूरे तोर पर पाबन्दी करनेकी अपने देवगुरुके समक्ष प्रतिज्ञा करेंगे. . भाईसाहबों ! में इस विषयपर और ज्यादा विवेचन करना चाहता था परन्तु एकही विषयपर ज्यादा विवेचन करनेसे उसकी ताजगीमें फरक आताहै. श्रोताओंका दिल और नये २ पुष्पों और फलोंपर दोडता है. अकल मंदोंको एक इशाराही काफी होता है इस लिये इस इशारेको आपके इनसाफपर छोडकर में खुशीके साथ प्रगट करताहूं कि जिस महासभाको अनुमोदन करती हुई यह प्रान्तिक सभा हुई है उसमें मुख्य करके जीर्णमंदिरोद्धार, जीर्ण पुस्तकोद्वार, व्यवहारीक तथा धार्मिक केलवणी, 'निराश्रिताश्रय, जीवदया, जैन डाइरेक्टरी, हाणीकारक रीतरिवाज दूर करनेके बाबत और धार्मिक तथा अन्य शुभ खातोंका हिसाब बराबर साफ रखनेके बाबत विषय चर्ये गये है और इनहीपर सामाजिक और धार्मिक उन्नत्तिका आधार रखा. जाकर कार्यवाही शुरु की गई है. अपने धर्ममें मुख्य तीन तत्व हैं:-१. देव, २. गुरु. ३. धर्म. चुनाचे इन. तीन तत्त्वोंको पुष्ट करनेवाले यह ९ विषय हैं कि
SR No.536501
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1905 Book 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchand Dhadda
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1905
Total Pages452
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size13 MB
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