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________________ ९८ जैन कॉनफरन्स हरेल्ड. [ एप्रिल साधन नहीं हतुं माटे तेओ तेनो उपयोग समजता हता नहीं. हवे अमोने साधन मळेलुं छे माटे अमो तेनो उपयोग करीए छीए. ए उपरथी शुं सिद्ध थाय छे के, रीतंरिवाजो गमे तेमना घडेला होय पण ते जो धर्मविरुद्ध होय तो ते भांगी नांखवामां हरकत नथी. मरण पाछळ जमणवारादिक करवा सरखं नीच काम अत्यंत लज्जास्पद छे. बीजा धर्ममां तेने गमे ते आधार होय पण जैन धर्म तेथी तद्दन विरुद्धमां छे, ए वात प्रसिद्ध छे. रडवाकुटवानो रिवाज गुजरात प्रदेश करतां अहिंयां ओछो छे ए वात खरी छे, पण ए रिवाज अत्यन्त निंद्य होवाथी तद्दन नाबुद करी नांखवो, एज युक्त छे. ए करतां बीजी पण जे रुढी तमारामां पेठी होय ते काढी नांखवानी हुं आपने वारंवार भलामण करुंछु. सद्गृहस्थो ! विशेष करीने कन्याविक्रय जेवी अत्यन्त नीच रुढी माटे हुं आप साहेबोनुं वधारे ध्यान चुं छं. दक्षिणमां कोण जाणे ए रिवाज केवी रीते पेठो छे ? कन्याविक्रय करनार माणस घणी हलकी पंक्तिमां गणाय छे अने कन्याविक्रय बंध करवा माटे असरकारक भाषणो थवानी खास जरूर छे. ज्यां सुधी आ चाल बंध नहीं थाय त्यां सुधी तेना विरुद्धमां अखंड प्रयत्न चलाववा जोइए. तेथी पछात पडवुं नहीं. मारी धारणा प्रमाणे ए चालनुं बीज लग्ननी खरचाळ रुढीओमां छे. भयंकर खर्चनो बोजो लोको उपर पडवाथी तेओने ते खर्च पूरो करवा माटे पैसाना साधनो जोवां पडे छे. अने पेहेला निरुपायथी अने अज्ञानताथी आ मार्ग तेओ स्वीकारे छे अने कन्याओना पैसा लेवा नीकळे छे माटे पैसा आपनारा अने लेनारा बन्ने उपर अंकुश राखवो जोइए. जैन धर्मनो मुख्य आधार अहिंसा परमो धर्मः ए पवित्र वाक्य उपर छे. माटे जीवदया तरफ लक्ष आपवुं जोइए. आपणे दया पाळीए छीए, जीवोनी रक्षा करीए छीए पण केटलाएक अजाणपणाथी प्राणीजन्य चीजो वापरवामां आवे छे तेवी चीजो माटे सावचेती राखवी, अने पांजरापोळ जेवी संस्थाओ गामोगाम सारा पाया उपर थवी जोइए अने एक मोटा गाममां एवी संस्था थवी जोइए के गामेगामनी पांजरापोळ उपर ते संस्था देखरेख राखे अने तेमां जे खामीओ जणाय ते दूर करवानो प्रयत्न करे. आपणा धर्मनो विजय, भूषण, अने गौरव जिनमंदिरोमां रहेलुं छे. माटे ज्यां ज्यां जिनेश्वर भगवाननां मंदिरो होय, त्यां त्यांनी व्यवस्था केवा प्रकारनी छे एनो शोध करी, ज्यां ज्यां आशातनाओ थती होय त्यां त्यां माणसो मोकली बनती कोशीसे ते आशातना दूर करी अने जे तीर्थोमां के ग्रामोमां मंदिरो भांगी पडेलां छे त्यां दुरुस्त करावी जिनचैत्यो उत्तम हालतमां राखवानी जरूर छे. जे गाममां श्रावकोनी वस्ती नहीं होय अने आशातना टाळवी अशक्य थई पडे छे, त्यांथी ज्यां ज्यां प्रतिमाओनी जरूर होय त्यां त्यां छूटथी आपवी जोइए; अने एके जिनमंदिर अपूज नहीं रहे तेवी कोशेश थवी जोइए. दक्षिणना अन्तरिक्ष पार्श्वनाथना तीर्थ माटे हाल जेवी कमिटी निमाई छे तेवी कमिटी तमाम दक्षिण प्रांत माटे निमवामां आवे तो बहु सारं. आपणी अवनतीनुं बीजुं कारण आपणामां चालती कुरीतीओ छे एवुं हुं पहेलां कही गयोद्धुं तेमां बाळलग्न, वृद्धविवाह, अयोग्य विवाह, कजोडा इत्यादि चालोनो समावेश थाय छे. बाळलग्नथी केवा प्रकारनी पायमाल स्थिति थती जायछे तेना दाखला आपणे नित्य जोईए छीए. अपक्क वीर्यनो नाश थवाथी शौर्य, धैर्य, हुशियारी, साहस, शक्ति इत्यादि सद्गुणोथी माणस तदन विन्मुख थई जायछे, अने आपणी निर्वीर्य प्रजा निरुत्साही अने मंदबुद्धिनी थती जायछे अने आनुष्वीक गुणोथी तेनो प्रसार आखी
SR No.536501
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1905 Book 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchand Dhadda
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1905
Total Pages452
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size13 MB
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