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जैन कोन्फरन्स हैरल्ड.
[ एप्रिल ___ आपणे विचार करवानो के हाल जीर्णोद्धार नी व्यवस्था थाय छे. तेनुं जो प्रमाण जोइए तो जीर्णोद्धारने जेटली रकमनी आवश्यकता छे तेना एक शतांश जेटली पण आपणी कॉन्फरन्स पासे ना. हालमां जे खर्च थाय छे ते आपणी कल्याणक भूमिना उपर अत्यन्त जरुरना ठेकाणे थाय छे. ए अनुक्रमनीज राह जोता बेसीशुं तो दक्षिण प्रान्तमा जे जीर्ण तीर्थो छे तेमनो वारो क्यारे आवे ? अर्थात् एकला कॉन्फरन्सना फंडथी ए काम पुरुं थाय तेम नथी. तेना माटे दरेक प्रान्तमांज तजवीजो थवी जोईए छे. दक्षिण प्रान्तमा जे जे शहेरोमां कालवशात् जीर्णप्राय मंदिरो यई गयां छे ते ते शेहरोमां जई दक्षिणी लोकोएज सुधारानो आरंभ करवो जोईए. आ विवेचन उपरथी खुल्लु जणाय छेके प्रान्तिक सभानी अत्यन्त आवश्यकता छ, अने ते करवानो तमोए निर्णय कर्यो, ते अत्यन्त उत्तम काम विचार्यु छे. अने तमोए आपणा श्वेताम्बरी संबंधमां प्रान्तिक सभानो दाखलो पहेलोज बतावी आप्यो छे, ए पण खरेखर तमारा माटे अत्यन्त अभिनंदनीयछे. दक्षिणी बांधवोए आ सभा भरीने आखी हिंदुस्थाननी जैन कोमने -सारो दाखलो बतावी' आपेलो छे. अने तेमां पण विशेष अभिनंदनीय ए छे के आमलनेर जेवी नानी वस्तीमां आ काम उपाडयुं अने ते पण घणीज फतेहमंद रीते निवडयुं ते खरेखर बीजाओ माटे दाखला रूप छे. एक नानी सरखी वस्तीवाळा लोको पण धारे तो केटलं काम उपाडी शकेछे ए तमारा दाखला उपरथी बीजाओने शीखबा जेवू छे.
पुरुषार्थ फोरववानी जरूर. मनुष्य जन्म मळवो अत्यन्त दुष्कर छे, एबुं आपणा पूर्वाचार्यों अखंड वाणीथी केहता आव्या छे. ते मनुष्य जन्मनी सार्थकता पुरुषार्थ फोरववामां छे:
एटले धर्म, अर्थ, काम, अने मोक्ष ए चारे पुरुषार्थ साधन करवानी दरेक माणसने अत्यन्त आवश्यकता छे. पुरुषार्थसाधन वगर मनुष्यनो जन्म केवळ बकरीना गळामां रहेला निरर्थक स्तननी पेठे छे. पुरुषार्थनो अनुक्रम जोके धर्म, अर्थ, काम, अने मोक्ष एवो छ पण विचार करवानो ए छे के कदाच ते माटे घणाज थोडा लोको प्रयत्न करता होय एवो संभव छे. बाकी रह्या त्रण पुरुषार्थ धर्म, अर्थ, अने काम; तेमां आपणी स्थिति केवा प्रकारनी थई गई छे तेनो आपणे विचार करीए. पेहला धर्म, पछी अर्थ, अने पछी काम एवो अनुक्रम छतां अमोए हालमां ते अनुक्रम फेरवी तदन उलटो करी नांख्यो छे. एटले पेहेलां काम-लग्न करवा, विवाह करवा, मोज शोखमां दिवस गाळवा, एमां अमारी अडधी शक्तिनो नाश थई जाय छे. आ काळमां मोक्षसाधन करवू ए सेहे लुं नथी. सारांश, जे त्रीजो पुरुषार्थ तेने प्रथम योजवामां आवे छे, ते पछी अर्थ एटले द्रव्यसाधन; आपणे द्रव्यसाधन पेहलां करतां केटलु वधारे अथवा ओर्छ करीए छीए तेनो दरेक विचारी माणसे विचार करवो जोईए छे. आपणी कोमनी दीन पर दीन स्थिति नबळी थती जाय छे, ज्यां सेंकडो कोटी ध्वज हता त्यां हवे सहस्र ध्वज पण नजरे पडता नथी. मतलबके आपणी कोम अर्थ साधनमां पण जेवी जोईए तेवी फावी शक्ती नथी. छेले रह्यो धर्म; तेनी आपणे केटली दरकार राखीए छीए ते देखीतुंज छे. धर्मना नामे वाचालता करनारा घणा नजरे पडे छे. पण धर्मनो हेतु अने तेनुं खरूं रहस्य समजनारो एक पण वीरपुरुष आगळ आवी शकतो नथी. घणाज विरला पुरुषो धर्म साधनमां लीन थयेला जणाय छे. माटे आवी अवनत स्थिति बदली पुरुषार्थ साधननी उच्च स्थिति प्राप्त करो लेवानो दरेक माणसे प्रयत्न करवो जोईए. ए पुरुषार्थ चतुष्टय—साधन करवानो मुख्य आधार शुं छे तेनो विचार करता आचार्योए बतावेला जैन