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________________ ૧૨૮ જનયુગ માગશર ૧૯૮૪ વિવિધ નોંધ. ( 1-५२-२४ माश-पश्षिह-आयर्यालय १२३५०. ) १ उपदेशक पुंजालाल प्रेमचंदका रिपोर्ट. चौधरीजी तिलाकचंदजीके प्रमुख स्थानमें दो गोडवाड (मारवाड) प्रान्तके प्रवासकी सभाओ हुई कॉन्फरन्सको आवश्यकता-सामाशरुआत श्रीवरकाणाजी से हई. श्रीपार्श्वनाथ जिक उन्नतिके लिये ओर श्रीसुकृत भंडारको जैनविद्यालयकी विझिट की. धामिक अभ्यास योजनापर भाषण दीया वकील समर्थमलजीठीक था. वहांसे आचार्य श्री विजयवल्लभ- सींगी भभूतमलजी पोरवाडकी तरफसे फंडकी सूरीश्वरजीका चार्तुमास वीजोवा ग्राममें योजनाका प्रस्तावका समर्थन हुवा और श्री होनेसे श्रीसुकृत भंडारकी योजनाका सत्कार महावीर मंडलके स्वयंसेवक बंधुओकी होना मुझको संम्भव था जिस लिए वहां मार्फत फंड वसूल हुवा। यहांसे फिर कार्तिक जाना हुवा और श्री आचार्यश्रीके प्रमुख- सुदी १०-११-१२ की श्रीवरकाणाजी मुकामपर स्थानमें एक सभा और शेठ गुलाबचंदजी श्रीपार्श्वनाथ जैन विद्यालयकी जनरल सभा नगरशेठके प्रमुखस्थानमें दुसरी सभा करके होनेवाली थी उस वख्त पारी मणिलाल कोन्फरन्सके ठहरावो-उद्देश और श्रीसुकृत- खुशालचंद और हीरालालजी 'सूराणाभी भंडारकी योजना समजाई मगर कुच्छ फायदा पधारेथे. श्रीवरकाणाजी जाकर सभाकी मींटीप्राप्त नही हुवा, फिर सादरी जाकर मुनिश्री गर्म श्रीमान शेठ सरदारचंदजी महेताकी बुद्धिविजयजी और मुनिश्री तिलकविजयजीके अध्यक्षतामें सुकृत भंडारकी योजनाका सत्कार व्याख्यानमें "कोन्फरन्समें फायदा और श्रीगोडवाडका श्रीसंघ करे ईस लिये एक समाजका कर्तव्य "के विषयपर तथा सुकृत- प्रमाणपत्र देनेकी मागणी की गई और भंडारके लिए व्याख्यान दोया दुसरे दीन शीरोहीके संघने श्रीसुकृत भंडार फंडकी श्री संघ (शेठ धरमचंद दयाचंद की एक योजनाका सत्कार करके कॉन्फरंसको कमिटि एकत्रित हुई और गोडवाड श्रीसंघका सन्मानित की है वैसे आपको भी करना पत्र आनेसे श्रीसुकृतभंडारकी योजनाका चाहिए. अंतमे यह निश्चय हुवाके एक सत्कार किया जाय ऐसा निर्णय होनेपर भलामणपत्र याने प्रमाणपत्र दीया जाय । आसो सुदी ६-७-८ के दीन मीलनेवाली वकील हीरालालजी सूराणाके परिश्रमसें श्रीपार्श्वनाथ जैनविद्यालयकी कार्यवाहक हमारी महेनत सफल हुई और श्रीगोडवाडके कमिटिसे सुकृतभंडारकी वसूलातके लिए सभापति शेठ सरदारचंदजी महेताकी तरफसे एक पत्रकी मागणी की परन्तु कातिक सुदी एक प्रमाणपत्र दीया गया ईसको मान देकर १०-११-१२ की जनरल सभा होगी उस सादरी संघने श्रीसुकृत भंडार फंडकी योजवख्तपर विचार होगा। ऐसा जवाब मीलनेसे नाका प्रथम सत्कार कीया और घाणेरावहमारा उत्साह बहुत हठ गया क्याकी एक देसूरी-नालाई-नाडोलके श्रीसंघने सुकृतमासका परिश्रम हमारा कुच्छ लाभदायक भंडारकी योजनाका अमल कीया है और नही हुवा. तबभी मुझको मारवाड छोडकर प्रत्येक ग्राममें सभाओद्वारा कॉन्फरन्सके गुजरात जाना मुनासीब नहि लगा. वहांसे उद्देश और हानिकारक रिवाजोंसे अलग शीरोही गया. बोबावत गुलाबचंदजी तथा रहेनेका समजाया गया.
SR No.536287
Book TitleJain Yug 1984
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Dalichand Desai
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1984
Total Pages622
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Yug, & India
File Size49 MB
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